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मुफ्त खोर मेहमान (मजेदार कहानी)

  एक राजा के शयनकक्ष में मंदरीसर्पिणी नाम की जूं ने डेरा डाल रखा था। रोज रात को जब राजा जाता तो वह चुपके से बाहर निकलती और राजा का खून चूसकर फिर अपने स्थान पर जा छिपती। संयोग से एक दिन अग्निमुख नाम का एक खटमल भी राजा के शयनकक्ष में आ पहुंचा। जूं ने जब उसे देखा तो वहां से चले जाने को कहा। उसने अपने अधिकार-क्षेत्र में किसी अन्य का दखल सहन नहीं था। लेकिन खटमल भी कम चतुर न था, बोलो, ''देखो, मेहमान से इसी तरह बर्ताव नहीं किया जाता, मैं आज रात तुम्हारा मेहमान हूं।'' जूं अततः खटमल की चिकनी-चुपड़ी बातों में आ गई और उसे शरण देते हुए बोली, ''ठीक है, तुम यहां रातभर रुक सकते हो, लेकिन राजा को काटोगे तो नहीं उसका खून चूसने के लिए।'' खटमल बोला, ''लेकिन मैं तुम्हारा मेहमान है, मुझे कुछ तो दोगी खाने के लिए। और राजा के खून से बढ़िया भोजन और क्या हो सकता है।'' ''ठीक है।'' जूं बोली, ''तुम चुपचाप राजा का खून चूस लेना, उसे पीड़ा का आभास नहीं होना चाहिए।''   ''जैसा तुम कहोगी, बिलकुल वैसा ही होगा।'' कहकर खटमल शयनक

नकल करना बुरा है (मजेदार कहानी)

एक पहाड़ की ऊंची चोटी पर एक बाज रहता था। पहाड़ की तराई में बरगद के पेड़ पर एक कौआ अपना घोंसला बनाकर रहता था। वह बड़ा चालाक और धूर्त था। उसकी कोशिश सदा यही रहती थी कि बिना मेहनत किए खाने को मिल जाए। पेड़ के आसपास खोह में खरगोश रहते थे। जब भी खरगोश बाहर आते तो बाज ऊंची उड़ान भरते और एकाध खरगोश को उठाकर ले जाते। एक दिन कौए ने सोचा, 'वैसे तो ये चालाक खरगोश मेरे हाथ आएंगे नहीं, अगर इनका नर्म मांस खाना है तो मुझे भी बाज की तरह करना होगा। एकाएक झपट्टा मारकर पकड़ लूंगा।'   दूसरे दिन कौए ने भी एक खरगोश को दबोचने की बात सोचकर ऊंची उड़ान भरी। फिर उसने खरगोश को पकड़ने के लिए बाज की तरह जोर से झपट्टा मारा। अब भला कौआ बाज का क्या मुकाबला करता। खरगोश ने उसे देख लिया और झट वहां से भागकर चट्टान के पीछे छिप गया। कौआ अपनी हीं झोंक में उस चट्टान से जा टकराया। नतीजा, उसकी चोंच और गरदन टूट गईं और उसने वहीं तड़प कर दम तोड़ दिया। शिक्षा—नकल करने के लिए भी अकल चाहिए।

भारतीय गोवंश का समीकरण देश के लिए अभिशाप

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-:भारतीय गोवंश का संकरीकरण देश के लिए अभिशाप:-  प्राचीन काल से हमारे गांवों कस्बों में स्वदेशी नस्ल के सांड पालने व रखने की व्यवस्था सामूहिक रूप से ग्रामीण जनता करती थी, वह खुला बेरोक-टोक विचरण करता हुआ कहीं भी चरने में स्वतंत्र था।  आजादी के बाद ग्रामीण स्तर पर पंचायती राज स्थापित होने के पश्चात पुरानी सामाजिक व्यवस्था में परिवर्तन आया और यह परंपरागत व्यवस्था धीरे-धीरे समाप्त प्राय: हो गई। उचित देखभाल व खुराक ना मिलने से सांडों की प्रजनन क्षमता में एवं संख्या में कमी आई। इसका असर समस्त गोवंश पर पड़ा, गायों की दूध देने की क्षमता घट गई जिसके परिणाम स्वरुप देश के लिए अपेक्षित मात्रा में शुद्ध दूध की उपलब्धता में कमी आ गई।  आभाव ही आविष्कार की जननी है, इस हेतु हमारे कृषि विशेषज्ञों/ वैज्ञानिकों ने अधिक दूध दूध प्राप्ति के उपायों पर गहन चिंतन किया और विदेशों में जाकर वहां की जर्सी नस्ल की गायों में दूध देने की क्षमता का अध्ययन किया, उनकी अधिक दूध देने की क्षमता से प्रभावित होकर हमारे यहां इन संकरित गायों सांडों की व्यवस्था करवाई। दूध का व्यापार करने वाले डेयरी मालिकों व संपन्न नागरिकों ने

खोड़ा कॉलोनी के वार्ड नंबर 20 के सभासद रजनीश सिंह को स्कूल में मिला सम्मान

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ग्रैंड्पेरेंट्स डे के उपलक्ष में विद्या प्ले स्कूल द्वारा मुझे मुख्य अथिथि के रूप में बुलाकर ओर इतना सम्मान देने के लिए में प्रिन्सिपल जी PR सभी अध्यापको का दिल से धन्यवाद करता हु ओर ओर विद्यालय ऐसे ही आप के संरक्षण में आगे बड़ता रहे ये ही कामना करता हु ।

प्राचीन स्वास्थ्य दोहावली (घरेलू नुक्सा)

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-:प्राचीन स्वास्थ्य दोहावली:-  पानी में गुड़ डालिए बीत जाए जब रात।  सुबह छानकर पीजिए अच्छे हालात।।  धनिया की पत्ती मसल बूंद नैन में डार।  दुखती अखियां ठीक हो पल लागे दो-चार।।  ऊर्जा मिलती है बहुत पीएं गुनगुना नीर।  कब्ज खत्म हो पेट की उम्र मिट जाए हर पीर।।  प्रातः काल पानी पिए घुट-घुट कर आप।  बस दो-तीन गिलास है हर औषधि का बाप।।  ठंडा पानी पियो मत करता क्रूर प्रहार।  करें हाजमे का सदा ही ये तो बंटाधार।।  भोजन करे धरती पर अल्थी पल्थी मार।  चबा- चबा कर खाइए वैद्य न झाके द्वार।।  प्रातः काल फल रस लो दोपहर लस्सी छाछ।  सदा रात में दूध भी सभी रोग का नाश।।  प्रातः दोपहर लीजिए जब नियमित आहार।  तीस मिनट की नींद लो रोग ना आवे द्वार।।  भोजन करके रात में घूमे कदम हजार।  डाक्टर ओझा वैदि की का लूट जाए व्यापार।।  घुट- घुट पानी पियो रह तनाव से दूर।  एसिडिटी या मोटापा होवे चकनाचूर।।  अर्थराइज या हर्निया अपेंडिक्स का बास।  पानी पीजै बैठकर कभी ना आवे पास।।  रक्तचाप बढ़ने लगे तब मत सोचो भाई।  सौगंध राम की खाई के तुरंत छोड़ दो चाय।।  सुबह खाइए कुंवर सा दोपहर यथा नरेश।  भोजन रात में जैसे रंग सुरेश।।  देर रात

2 दिनों के लिए गाजियाबाद के स्कूलों में अवकाश(आवश्यक सूचना)

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आवश्यक सूचना  जिलाधिकारी गाजियाबाद अजय शंकर पांडेय ने जानकारी देते बताया कि आगामी 2 दिनों तक शीत लहरी को दृष्टिगत रखते हुए जनपद के नर्सरी से कक्षा 12 तक के सभी स्कूल बंद रहेंगे ताकि स्कूली बच्चों को शीत लहरी से बचाया जा सके।

ओढ़ के तिरंगा क्यों पापा आएंगे (कौशलेंद्र वर्मा की कविता)

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मर्मस्पर्शीय कविता एक बालक की जिसके फौजी पिता तिरंगा ओढ़ कर घर आए हैं। -:ओढ़ के तिरंगा क्यों पापा आए हैं?:-  ओढ़ के तिरंगा क्यों पापा आए हैं?  माँ मेरा मन बात यह समझ ना पाए हैं,  ओढ़ के तिरंगा क्यों पापा आए हैं।  पहले पापा मुन्ना मुन्ना कहते आते थे,  टॉफिया खिलौने साथ में भी लाते थे।  गोदी में उठाकर खूब खिलखिलाते थे,  हाथ फेरर सर पर प्यार भी जताते थे।  पर ना जाने आज क्यों वह चुप हो गए,  लगता है कि खूब गहरी नींद सो गए।  नींद से पापा उठो मुन्ना बुलाए हैं,  ओढ़ के तिरंगे को क्यों पापा आए हैं।  फौजी अंकल लोगों की भीड़ घर क्यों आई है,  पापा का सामान साथ में क्यों लाई है।  साथ में क्यों लाई है वह मैडलों के हार,  आंख में आंसू क्यों सबके आते बार-बार।  चाचा मामा दादा दादी चीखते हैं क्यों,  मां मेरी बता वो सर को पीटते हैं क्यों।  गांव क्यों शहीद पापा को बताए हैं,  ओढ़ के तिरंगा क्यों पापा आए हैं।  मां तू क्यों है इतना रोती यह बता मुझे,  होश क्यों हर पल है खोती ये बता मुझे।  माथे का सिंदूर है क्यों है दादी पोछती,  लाल चूड़ी हाथ में क्यों बुआ तोड़ती।  काले मोतियों की माला क्यों उतारी है,  क्या तुझ