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भारत के सपूत राणा संग भामाशाह

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*-:भारत के सपूत:-* *राणा संग भामाशाह* क्या आपने कभी पढ़ा है कि हल्दीघाटी के बाद अगले १० साल में मेवाड़ में क्या हुआ??  इतिहास से जो पन्ने हटा दिए गए हैं उन्हें वापस संकलित करना ही होगा क्यूँकि वही हिन्दू रेजिस्टेंस और शौर्य के प्रतीक हैं।  इतिहास में तो ये भी नहीं पढ़ाया गया है कि हल्दीघाटी युद्ध में जब महाराणा प्रताप ने कुंवर मानसिंह के हाथी पर जब प्रहार किया तो शाही फ़ौज पाँच छह कोस दूर तक भाग गई थी और अकबर के आने की अफवाह से पुनः युद्ध में सम्मिलित हुई है,  ये वाकया अबुल फज़ल की पुस्तक अकबरनामा में दर्ज है, क्या हल्दी घाटी अलग से एक युद्ध था..या एक बड़े युद्ध की छोटी सी घटनाओं में से बस एक शुरूआती घटना.... महाराणा प्रताप को इतिहासकारों ने हल्दीघाटी तक ही सीमित करके मेवाड़ के इतिहास के साथ बहुत बड़ा अन्याय किया है, वास्तविकता में हल्दीघाटी का युद्ध, महाराणा प्रताप और मुगलो के बीच हुए कई युद्धों की शुरुआत भर था।  मुग़ल न तो प्रताप को पकड़ सके और न ही मेवाड़ पर आधिपत्य जमा सके, हल्दीघाटी के बाद क्या हुआ वो हम बताते हैं। हल्दीघाटी के युद्ध के बाद महाराणा के पास सिर्फ 7000 सैनिक ही बचे थे,  और कुछ

सफल जीवन

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*-:सफल जीवन:-* एक बार अर्जुन ने कृष्ण से पूछा- माधव.. ये 'सफल जीवन' क्या होता है ? कृष्ण अर्जुन को पतंग  उड़ाने ले गए।   अर्जुन कृष्ण  को ध्यान से पतंग उड़ाते देख रहा था. थोड़ी देर बाद अर्जुन बोला- माधव.. ये धागे की वजह से पतंग अपनी आजादी से और ऊपर की ओर नहीं जा पा रही है, क्या हम इसे तोड़ दें ? ये और ऊपर चली जाएगी| कृष्ण ने धागा तोड़ दिया .. पतंग थोड़ा सा और ऊपर गई और उसके बाद लहरा कर नीचे आयी और दूर अनजान जगह पर जा कर गिर गई... तब कृष्ण ने अर्जुन को जीवन का दर्शन समझाया... पार्थ..  'जिंदगी में हम जिस ऊंचाई पर हैं..  हमें अक्सर लगता की कुछ चीजें, जिनसे हम बंधे हैं वे हमें और ऊपर जाने से रोक रही हैं; जैसे :             -घर-          -परिवार-        -अनुशासन-       -माता-पिता-        -गुरू-और-           -समाज- और हम उनसे आजाद होना चाहते हैं... वास्तव में यही वो धागे होते हैं - जो हमें उस ऊंचाई पर बना के रखते हैं.. 'इन धागों के बिना हम एक बार तो ऊपर जायेंगे परन्तु बाद में हमारा वो ही हश्र होगा, जो बिन धागे की पतंग का हुआ...' "अतः जीवन में यदि तुम ऊंचाइयों पर बने रहना च

हिंसा और अहिंसा

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*-:हिंसा और अहिंसा:-* भगतसिंह  और  सुभाषचंद्र  बोस  का  गांधीजी  से  हिंसा  और  अहिंसा  को  लेकर  मतभेद  था ।  बाकी  वे  दोनो  ही  गांधीजी  का  सम्मान  करते  थे ।  आजकल  कुछ  लोगो  द्वारा  गांधी  विरुद्ध  भगतसिंह - गांधी  विरुद्ध  बोस  बनाने  की  कोशिश  हो  रही  है , वैसा  खुद  भगतसिंह  और  बोस  भी  नही  करते  थे ।  फरवरी  1931  में  अपने  एक  लेख  में  भगतसिंह  लिखते  है  की , गांधीजी ने  मजदूरो  को  सत्याग्रह  आंदोलन  में  भागीदार  बनाकर  मज़दूर  क्रांति  की  नई  शुरुआत  करदी  है ।  क्रांतिकारीयो  को  इस  अहिंसा  के  फरिश्ते  को  उनका  योग्य  स्थान  देना  चाहिए ।   जो  मोबाइल  को  ही  अपनी  लायब्रेरी  बना  चुके  हैं  उन  युवाओ  को  यह  बात  अच्छी  तरह  से  जान  लेनी  चाहिए  की  भगतसिंह  हिंसा  और  अहिंसा  को  लेकर  सोचते  क्या  थे ? * भगतसिंह  कहते  थे , हिंसा  अंतिम  क्षण  में  इस्तमाल  करने  की  चीज़  है , वर्ना  अहिंसा  के  मार्ग  से  ही  क्रांति  लाई  जानी  चाहिए । * जरुरी  नही  था  कि  क्रांति  में  अभिशप्त  संघर्ष  शामिल  हो ।  यह  बम  और  पिस्तौल  का  पथ  नही  था । * बम  और  पिस

कृतघ्न राष्ट्र यह अपराध अक्षम्य है..।:-* *एक बार जरूर पढ़ें*

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*-:कृतघ्न राष्ट्र यह अपराध अक्षम्य है..।:-* *एक बार जरूर पढ़ें* *बटुकेश्वर_दत्त !* नाम याद है या भूल गए ?? हाँ, ये वही बटुकेश्वर दत्त हैं जिन्होंने भगतसिंह के साथ दिल्ली असेंबली में बम फेंका था और गिरफ़्तारी दी थी। अपने भगत  पर तो जुर्म संगीन थे लिहाज़ा उनको सजा-ए-मौत दी गयी । पर बटुकेश्वर दत्त को आजीवन कारावास के लिए काला पानी (अंडमान निकोबार) भेज दिया गया और मौत उनको करीब से छू कर गुज़र गयी।  वहाँ जेल में भयंकर टी.बी. हो जाने से मौत फिर एक बार बटुकेश्वर पर हावी हुई लेकिन वहाँ भी वो मौत को गच्चा दे गए। कहते हैं जब भगतसिंह, राजगुरु सुखदेव को फाँसी होने की खबर जेल में बटुकेश्वर को मिली तो वो बहुत उदास हो गए। इसलिए नहीं कि उनके दोस्तों को फाँसी की सज़ा हुई,,, बल्कि इसलिए कि उनको अफसोस था कि उन्हें ही क्यों ज़िंदा छोड़ दिया गया !  1938 में उनकी रिहाई हुई और वो फिर से गांधी जी के साथ आंदोलन में कूद पड़े लेकिन जल्द ही फिर से गिरफ्तार कर जेल भेज दिए गए और वो कई सालों तक जेल की यातनाएं झेलते रहे। बहरहाल 1947 में देश आजाद हुआ और बटुकेश्वर को रिहाई मिली। लेकिन इस वीर सपूत को वो दर्जा कभी ना मिला जो हमा

शहीद महावीर सिंह राठौर

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*-:शहीद महावीर सिंह राठौर:-* शहीद महावीर सिंह राठौर का जन्म 16 सितम्बर 1904 को उत्तर प्रदेश में जिला एटा के राजा का रामपुर के शाहपुर टहला ग्राम में हुआ था । पिता का नाम कुँवर देवी सिंह राठौर व माता का नाम श्रीमती शारदा देवी था। महावीर सिंह जी ने आठवीं कक्षा तक की शिक्षा कासगंज, मैट्रिक एटा में पूर्ण की उसके बाद की शिक्षा पूरी करने के लिये आप कानपुर गये, जो उस वक्त क्रांतिकारी नेताओं का केंद्र बन चुका था । वहीं से आप भी क्रांतिकारी नेता भगतसिंह, चंद्रशेखर आज़ाद, सुखदेव, शिव वर्मा आदि के साथ उन्हीं के दल में शामिल हो गये । 8-9 सितम्बर 1928 को इन लोगों ने दिल्ली में एक मीटिंग की और एक केन्द्रीय दल बनाया।दल की कार्यकारिणी समिति में आठ सदस्य चुने गए। ये थे सुखदेव ,भगत सिंह,शिव वर्मा, महावीर सिंह,विजय कुमार सिन्हा,फणीद्रनाथ घोष,कुन्दन लाल और चन्द्रशेखर आजाद । अक्टूबर 1928 के अंतिम सप्ताह में साइमन कमीशन लाहौर पहुँचा।वहाँ इसके विरोध में लाला लाजपत राय के नेतृत्व में एक विशाल जुलूस खड़ा था। पुलिस ने जुलूस पर लाठियाँ बरसाईं।लाला जी घायल हो गये और कुछ दिन बाद उनकी मृत्यु हो गई। लाला जी की मौत का ब

सपूतों को नमन

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*-:सपूतों को नमन ।।:-* जैसे - जैसे समाज गौमाता से दूर होता गया तांत्या टोपे , लक्ष्मी बाई , बोस , चंद्रशेखर, बिस्मिल , खुदीराम , भगतसिहं , राजगुरु , सुखदेव --- और राजीव दीक्षित जैसे महापुरुषों ने अवतार लेना बंद कर.दिया --- बुरा मत मानना साथियो , अब तो लालू , मुलायम , ममता , माया , केजरी---- और राहुल जी को महापुरुष मानकर दिल को समझाना पङेगा !!! भारतमाता के वीर सपूतों को नमन ।। *✍ कौशलेंद्र वर्मा।*

मैं नास्तिक क्यों हूं

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*-:मैं नास्तिक क्यों हूँ:-* मैं नास्तिक क्यों हूँ? भगतसिंह (1931) यह लेख भगत सिंह ने जेल में रहते हुए लिखा था और यह 27 सितम्बर 1931 को लाहौर के अखबार “ द पीपल “ में प्रकाशित हुआ । इस लेख में भगतसिंह ने ईश्वर कि उपस्थिति पर अनेक तर्कपूर्ण सवाल खड़े किये हैं और इस संसार के निर्माण , मनुष्य के जन्म , मनुष्य के मन में ईश्वर की कल्पना के साथ साथ संसार में मनुष्य की दीनता , उसके शोषण , दुनिया में व्याप्त अराजकता और और वर्गभेद की स्थितियों का भी विश्लेषण किया है । यह भगत सिंह के लेखन के सबसे चर्चित हिस्सों में रहा है। स्वतन्त्रता सेनानी बाबा रणधीर सिंह 1930-31के बीच लाहौर के सेन्ट्रल जेल में कैद थे। वे एक धार्मिक व्यक्ति थे जिन्हें यह जान कर बहुत कष्ट हुआ कि भगतसिंह का ईश्वर पर विश्वास नहीं है। वे किसी तरह भगत सिंह की कालकोठरी में पहुँचने में सफल हुए और उन्हें ईश्वर के अस्तित्व पर यकीन दिलाने की कोशिश की। असफल होने पर बाबा ने नाराज होकर कहा, “प्रसिद्धि से तुम्हारा दिमाग खराब हो गया है और तुम अहंकारी बन गए हो जो कि एक काले पर्दे के तरह तुम्हारे और ईश्वर के बीच खड़ी है। इस टिप्पणी के जवाब में ही