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परमेश्वर की कृपा:

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*-: परमेश्वर की कृपा:-* *प्रकृत्य ऋषि का* *रोज का नियम था कि* *वह नगर से दूर जंगलों में स्थित शिव मंदिर में भगवान् शिव की पूजा में लींन रहते थे।* *कई वर्षो से यह उनका अखंड नियम था उसी जंगल में एक नास्तिक डाकू अस्थिमाल का भी डेरा था।* *अस्थिमाल का भय आसपास के क्षेत्र में व्याप्त था अस्थिमाल बड़ा नास्तिक था वह मंदिरों में भी चोरी-डाका से नहीं चूकता था।* *एक दिन अस्थिमाल की नजर प्रकृत्य ऋषि पर पड़ी उसने सोचा यह ऋषि जंगल में छुपे मंदिर में पूजा करता है हो न हो इसने मंदिर में काफी माल छुपाकर रखा होगा आज इसे ही लूटते हैं।* *अस्थिमाल ने प्रकृत्य ऋषि से कहा कि जितना भी धन छुपाकर रखा हो चुपचाप मेरे हवाले कर दो।* *ऋषि उसे देखकर तनिक भी विचलित हुए बिना बोले- कैसा धन ?* *मैं तो यहाँ बिना किसी लोभ के पूजा को चला आता हूं।* *डाकू को उनकी बातों पर विश्वास नहीं हुआ।* *उसने क्रोध में ऋषि प्रकृत्य को जोर से धक्का मारा।* *ऋषि ठोकर खाकर शिवलिंग के पास जाकर गिरे और उनका सिर फट गया।* *रक्त की धारा फूट पड़ी।* *इसी बीच आश्चर्य ये हुआ कि ऋषि प्रकृत्य के गिरने के* *फलस्वरूप शिवालय की छत से सोने की कुछ मोहरें अस्

भूख का कम लगना ,पाचक अग्नि का धीमा होना

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*-:भूख का कम लगना ,पाचक अग्नि का धीमा होना:-*  अगर आप को भूख कम लगती है या बिल्कुल भी नही लगती इस का कारण आप की पाचक शक्ति का धीमा या कम होना हो सकता है। १. अग्नितुण्डी बटी एक-एक गोली सुबह शाम भोजन से आधा घंटा पहले पानी से दीजिये। २. लवण भास्कर चूर्ण दो ग्राम सुबह शाम भोजन के तुरंत बाद मट्ठे से दीजिये। ३. चित्रकादि बटी एक-एक गोली सुबह दोपहर शाम को भोजन के बाद चूसने को दीजिये। चार-पांच दिन में दवा का असर आपको सामने दिखने लगेगा। बाजारू चटपटे आहार और साफ़्ट ड्रिंक आदि से परहेज कराइये। इस दवा से आप के वजन में भी कुछ बढ़ोत्तरी होगी एक माह तक ये दवा दें फिर उसके बाद ये दवा बंद करके द्राक्षासव दिन में दो-दो चम्मच ले। *✍ कौशलेंद्र वर्मा।*

घर में शंख रखने के लाभ

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*-:घर में शंख रखने के लाभ:-* घर में शंख रखने और बजाने के ये हैं ग्यारह आश्चर्यजनक लाभ!!!!!! पूजा-पाठ में शंख बजाने का चलन युगों-युगों से है। देश के कई भागों में लोग शंख को पूजाघर में रखते हैं और इसे नियमित रूप से बजाते हैं। ऐसे में यह उत्सुकता एकदम स्वाभाविक है कि शंख केवल पूजा-अर्चना में ही उपयोगी है या इसका सीधे तौर पर कुछ लाभ भी है!! सनातन धर्म की कई ऐसी बातें हैं, जो न केवल आध्यात्मिक रूप से, बल्कि कई दूसरे तरह से भी लाभदायक हैं। शंख रखने, बजाने व इसके जल का उचित इस्तेमाल करने से कई तरह के लाभ होते हैं। कई फायदे तो सीधे तौर पर सेहत से जुड़े हैं। आगे चर्चा की गई है कि पूजा में शंख बजाने और इसके इस्तेमाल से क्या-क्या फायदे होते हैं। 1. ऐसी मान्यता है कि जिस घर में शंख होता है, वहां लक्ष्मी का वास होता है। धार्मिक ग्रंथों में शंख को लक्ष्मी का भाई बताया गया है, क्योंकि लक्ष्मी की तरह शंख भी सागर से ही उत्पन्न हुआ है. शंख की गिनती समुद्र मंथन से निकले चौदह रत्नों में होती है। 2. शंख को इसलिए भी शुभ माना गया है, क्योंकि माता लक्ष्मी और भगवान विष्णु, दोनों ही अपने हाथों में इसे धारण करते

अंदरूनी आइना:-* *सज्जनों को ही सदा मुसीबतें क्यों आती हैं ?

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*-:अंदरूनी आइना:-* *सज्जनों को ही सदा मुसीबतें क्यों आती हैं ?*      सबसे पहले हम अच्छे लोग और बुरे लोगों के लक्षण जान लेते हैं  । दूसरों की मुसीबत के वक्त पर उनके कंधे के साथ कंधे मिलाने के लिए कभी भी पीछे नहीं हटनेवाले और अपनी  मुसीबत को दूसरों के साथ बाँटने के लिए झिझकनेवाले लोग ही अच्छे लोग याने सज्जन हैं ।    इनके यह अति कोमल अच्छाई ही इनका बुढापा है । ये लोग खुद उपवास रहकर बच्चों को खिलानेवाली माँ की तरह, अपने घर को अंधेरा रखकर देश को प्रकाशित करनेवाले महात्मा की तरह  होते हैं ।    बुरे लोग हिट्लर की तरह अमीरी के नशे में नरसंहार करनेवाले सर्वाधिकारी स्वभाववाले होते हैं । एक हैं महात्मा, जो मुसीबतों को भोगते ही हुतात्म हुए, और दूसरा है हिट्लर, वह भी दुःख में डूबकर ही मारा गया । याने यही सच निकला कि चाहे बुरे व्यक्ति हो या अच्छा व्यक्ति , दोनों को दुःख तो भोगना ही पडता है । तो सुख किसे मिलता है ? आनंद क्या है ? यह सवाल तो बाकी ही रहा । जानने के लिए आगे पढ़िए ।       आप जान लीजिए कि अच्छेपन और बुराई इन दोनों को सुख और दुःख से कोई ताल्लुक ही नहीं रहता है । किसी भी तरह खुद को ठगे बिना

सनातनियों के पास उस परमेश्वर के सिमरन हेतु अनंत भंडार है फिर भी यदी सनातनी भयभीत है , अर्थात वो अपनें सनातनी ज्ञान सागर से कटा हुआ है ।

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सनातनियों के पास उस परमेश्वर के सिमरन हेतु अनंत भंडार है फिर भी यदी सनातनी भयभीत है , अर्थात वो अपनें सनातनी ज्ञान सागर से कटा हुआ है ।  प्रात: वंदन और संध्या उपासना से जुड़ जाओ तुमसे बड़ा महावीर इस धरा पर कोई नहीं । बजरंग बाण " दोहा " "निश्चय प्रेम प्रतीति ते, विनय करैं सनमान।" "तेहि के कारज सकल शुभ, सिद्ध करैं हनुमान॥" "चौपाई" जय हनुमन्त सन्त हितकारी। सुन लीजै प्रभु विनय हमारी।। जन के काज विलम्ब न कीजै। आतुर दौरि महासुख दीजै।। जैसे कूदि सिन्धु के पारा। सुरसा बदन पैठि विस्तारा।। आगे जाय लंकिनी रोका। मारेहु लात गई सुर लोका।। जाय विभीषण को सुख दीन्हा। सीता निरखि परमपद लीन्हा।। बाग़ उजारि सिन्धु महँ बोरा। अति आतुर जम कातर तोरा।। अक्षयकुमार को मारि संहारा। लूम लपेट लंक को जारा।। लाह समान लंक जरि गई। जय जय जय धुनि सुरपुर नभ भई।। अब विलम्ब केहि कारण स्वामी। कृपा करहु उर अन्तर्यामी।। जय जय लखन प्राण के दाता। आतुर होय दुख हरहु निपाता।। जै गिरिधर जै जै सुखसागर। सुर समूह समरथ भटनागर।। जय हनु हनु हनुमंत हठीले। बैरिहिंं मारु बज्र की कीले।। गदा बज्र लै बैरिहिं

मम दीक्षा - गौरक्षा !!

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!! मम दीक्षा - गौरक्षा !! ब्रह्मा कहें गाय मेरी बेटी है उसकी नहीं मेरी पूजा - सेवा कर तुझे ब्रह्म लोक दे दिया जायेगा, फिर भी गाय की भक्ति न छोड़ना।  अगर विष्णु कहें गाय की भक्ति - सेवा छोड़ तुझे विष्णु लोक दे दूंगा मेरी पूजा - सेवा कर ना मानना।  अगर भोले बाबा भी एक दिन आ जायें कहें की गाय की भक्ति छोड़ मेरी भक्ति कर मेरे शिव लिंग स्वरुप पर जल चढ़ा, काशी आजा तुझे मुक्त कर दूंगा तब भी गौ - सेवा न छोड़ना। क्योकि गौ - प्रत्यक्ष 33 करोड़ देवी - देवताओ का चलता - फिरता देवालय है। इसे तृण - हरा घास खिला देते से ही मुक्ति मिल जायेगी मृत्यु अटल सत्य है अंतिम समय पर बैतरणी पर कोई पत्थर में से उठ कर देवी - देवता आये या न आये पर गाय को घास खिलाया होगा तो वह जरूर मुक्ति पद देने वहाँ खड़ी मिलेगी। यही सत्य है यही अटल सत्य है मनो न मनो मेरा क्या ? '' *✍ कौशलेंद्र वर्मा।*

सनातनी विचार

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*-:सनातनी विचार !:-* *भगवान के तीन ही मुख है प्रसाद ग्रहण करने के !* *1-- पहला गाय -गौवंश को दिया तृण सीधे भगवान को प्राप्त होता है और स्वाद की चर्चा तक गौमाता के यहाँ नहीं होती बस आशीर्वाद की प्राप्ति अवश्य होती है यह सनातन सत्य है।* *२---- भगवान का दूसरा मुख है संत- ब्राह्मण का मुख जहां स्वादिष्ट भोजन से आशीर्वाद प्राप्त होता है और आपका दिया भोग नारायण तक पहुचता है। अंत में दक्षिणा अति आवश्यक है !!* *३ - --- भगवान का तीसरा मुख है अग्नि जहाँ हवन द्वारा जड़ी- बूटी,जौ -तिल,ड्राय-फ़ूडऔर गौ घृत से भगवान को भोग लगाया जाता है। जिसे साधारण मनुष्य अपनी गरीबी के कारण बहुत कम कर पाते है। जो कर पाते है उनका कल्याण और लोक कल्याण निश्चित है यह भी सनातन सत्य है।* *मनुष्य को इन तीनो में से जो सरल उपाय हो या जो उनके सामर्थ्य में हो उसको अपना कर भगवान को नित्य भोग जरूर लगाना चाहिए जिससे परमात्मा द्वारा प्राप्त मानव शरीर, जल,अग्नि, वायु, पृथवी और आकाश के उपभोग का कर्ज कुछ कम हो। वैसे तो माता- पिता और भगवान का कर्ज कोई चूका नहीं पाया पर स्वार्थी नहीं परमार्थी बनने की कोशिश मानव को जरूर करनी चाहिए यही सनात