भगवान ऐसा किसी के साथ ना करें

यह कहानी फर्रुखाबाद जिले की मऊ गांव की है। इस गांव में सोनू बाथम नाम का एक व्यक्ति रहता था। जो बहुत दिनों से बीमार चल रहा था। उसकी हालत देखकर उसके पड़ोसियों ने उसे नजदीकी अस्पताल में भर्ती करा दिया। होनी को कौन रोक सकता है। अस्पताल में ही सोनू बाथम की मृत्यु हो गई। जब उसके पार्थिक शव को लेने कोई नहीं आया। तब अस्पताल वालों ने पुलिस वालों को सूचना दी। मौके पर पुलिस आ गई और सोनू बाथम के रिश्तेदारों को ढूंढने लगी। पता चला की सोनू बाथम का एक भाई है। जो दिल्ली में रहता है। दरोगा जी ने सोनू के भाई को फोन लगाया। और सुन कर हैरान रह गए। फोन पर सोनू बाथम के भाई ने कहा दरोगा जी जो आपको करना  है। वह करो मैं नहीं आ सकता हूं। आप सुनकर हैरान हो गए होंगे। कि इस कलयुग में ऐसे भी भाई हैं। जो अपने सगे भाई के मृत्यु पर भी नहीं आ सकते हैं। आपके दिमाग में तरह-तरह की बातें चल रही होंगी। कोई कह रहा होगा यह तो कलयुग है। कोई किसी का सगा नहीं है। पर यह कोई नहीं सोच रहा होगा की आखिर सोनू बाथम का भाई क्यों नहीं आया। चलो हम बताते हैं। जब दरोगा जी ने सोनू बाथम के भाई के पास फोन किया। तब सोनू बाथम का भाई रोने लगा। रो-रो कर अपनी दुर्दशा दरोगा जी को बताने लगा। 15 साल पहले हमारी माता पिता गुजर गए थे ‌। यही सोनू बाथम ही हमारा सगा भाई है । हमारी स्थिति बहुत देनी है। मैं दिल्ली में मजदूरी करके अपने बच्चों का पेट पालता हूं। दरोगा जी मेरे पास इतने भी पैसे नहीं हैं। जो कि मैं गांव आकर अपने भाई का अंतिम संस्कार कर सकूं। दरोगा जी ने कहा पैसे मैं दे दूंगा। सोनू बाथम के भाई ने बोला दरोगा साहब गांव आने का मतलब 10 15 दिन की छुट्टी हो जाएगी। इतनी छुट्टी के लिए मेरा मालिक मुझे काम से निकाल देगा। फिर मैं अपने बच्चों का पेट कहां से पा लूंगा। दरोगा जी मैं किसी भी कीमत में अपने भाई के अंतिम विदाई मैं नहीं आ सकता हूं। दरोगा जी को बहुत ही दया आई उन्होंने गांव वालों को बुलाकर सोनू बाथम का अंतिम संस्कार किया। जो भी खर्चा आया वह दरोगा जी ने स्वयं किया। और सोचने पर मजबूर हो गए की पैसे के कारण एक भाई अपने सगे भाई के अंतिम संस्कार मैं भी शामिल नहीं हो सका।


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