मुर्गी और सोने का अंडा

एक किसान के पास एक मुर्गी थी। वह प्रतिदिन एक सोने का अंडा दिया करती थी। वह उस अंडे को बाजार में बेच दिया करताा था। किसान देखते ही देखते धनवान बन गया। लोग उसका सम्मान करने लगे। वह जब उस मुर्गी को देखता था तो बड़ा प्रसन्न होता था। वह उसे बड़े प्यार सेे रखता था। एक दिन उसके मन में लालच समा गया। उसके मन में विचार आया कि मुर्गी के पेट के अन्दर न जाने कितने सोने के अंडे भरे पढ़े हैं। मैैं भी कितना मूर्ख हूं। अंडो का खजाना मेरे पास पड़ा है और मैं केवल एक अंडा रोज लेकर बेचने जाता हूं।       इसलिए क्यों न मुर्गी के पेट में से सारे अंडे एक ही बार में निकाल लूूं और उन्हें एक साथ बेच कर बहुत ज्यादा धनवान बन जाऊं। यह सोच कर उसने एक तेज धार बाला चाकू लिया और मुर्गी का पेट फाड़ डाला। उससे मुर्गी के पेट में एक भी अंडा न मिला और साथ ही मुर्गी भी मर गई। इस प्रकार वह किसान बहुत बढ़ा धनवान नहीं बन सका बल्कि उसे जो प्रतिदिन एक - एक अंडा मिलता था उससे भी उसे हाथ धोना पड़ा। किसी ने ठीक ही कहा है लोभ में बुद्धि भ्रष्ट हो जाती है।


शिक्षा - लालच बुरी बला है।


 


 


Comments

Popular posts from this blog

श्रीमद् भागवत कथा कलश यात्रा में महिलाओं ने लिया भारीख्या में भाग

खोड़ा मंडल मे अनेकों शक्ति केंद्र के बूथों पर सुनी गई मन की बात

भारतीय मैथिल ब्राह्मण कल्याण महासभा संगठन मैथिल ब्राह्मणों को कर रहा है गुमराह