भारतीय गोवंश का समीकरण देश के लिए अभिशाप

-:भारतीय गोवंश का संकरीकरण देश के लिए अभिशाप:-
 प्राचीन काल से हमारे गांवों कस्बों में स्वदेशी नस्ल के सांड पालने व रखने की व्यवस्था सामूहिक रूप से ग्रामीण जनता करती थी, वह खुला बेरोक-टोक विचरण करता हुआ कहीं भी चरने में स्वतंत्र था।  आजादी के बाद ग्रामीण स्तर पर पंचायती राज स्थापित होने के पश्चात पुरानी सामाजिक व्यवस्था में परिवर्तन आया और यह परंपरागत व्यवस्था धीरे-धीरे समाप्त प्राय: हो गई। उचित देखभाल व खुराक ना मिलने से सांडों की प्रजनन क्षमता में एवं संख्या में कमी आई। इसका असर समस्त गोवंश पर पड़ा, गायों की दूध देने की क्षमता घट गई जिसके परिणाम स्वरुप देश के लिए अपेक्षित मात्रा में शुद्ध दूध की उपलब्धता में कमी आ गई।
 आभाव ही आविष्कार की जननी है, इस हेतु हमारे कृषि विशेषज्ञों/ वैज्ञानिकों ने अधिक दूध दूध प्राप्ति के उपायों पर गहन चिंतन किया और विदेशों में जाकर वहां की जर्सी नस्ल की गायों में दूध देने की क्षमता का अध्ययन किया, उनकी अधिक दूध देने की क्षमता से प्रभावित होकर हमारे यहां इन संकरित गायों सांडों की व्यवस्था करवाई। दूध का व्यापार करने वाले डेयरी मालिकों व संपन्न नागरिकों ने अधिक दूध देने वाली इन संकरित जर्सी गायों व साण्डों को अपनाया। प्रांतीय सरकारों के पशुपालन विभागों ने स्वदेशी साण्डों की व्यवस्था नहीं कर के अपने सभी पशु चिकित्सा केंद्रों में विदेशी साडों के सीमेंस द्वारा कृत्रिम गर्भधान को प्रोत्साहन देकर सर्वदेशीय गायों का संकरी करण करने का कार्य प्रारंभ किया जो अविरल गति से आज भी चल रहा है।
 धीरे-धीरे अन्य गोपालक वह किसान अधित दूध प्राप्ति के लोभवश अपनी स्वदेशी नस्ल की गायों का विदेशी नस्ल के सांडों से प्राकृतिक वातावरण इंजेक्शन द्वारा कृत्रिम गर्भधान कराने पर मजबूर हो गए फलस्वरूप चारों तरफ विदेशी दोगली नस्ल की जर्सी गाय अधिक संख्या में नजर आ रही है।
 हमारे देश में ही जलवायु व जमीन के हिसाब से अलग-अलग प्रांतों में स्वदेशी नस्ल  के बैलों की कद- काठी, बार  ढोने की क्षमता व गायों के दूध देने की मात्रा में  काफी भिन्नता है ऐसे में यह संकरित गोवंश  हमारे देश के जलवायु के अनुकूल नहीं हो सकता। यहां के गर्म मौसम को सहन करने में असमर्थ इस गोवंश को ठंडे पानी द्वारै नहलाने वाला बिजली चालित पंखों में रखना पड़ता है, इसमें रोग प्रतिरोधक शक्ति की कमी है जिससे जल्द ही अनेक  बीमारियों का शिकार हो जाता है, इसे चारा दाना पानी भी अधिक देना पड़ता है इस प्रकार इस संकरित गोवंश के रखरखाव, बिजली  व दवाइयां आदि पर खर्च अधिक करना पड़ता है।
 इन संकरित गायों की प्रजनन क्षमता पांच से छे व्यात के बाद कम हो जाती है। हमारी स्वदेशी नस्ल की गायों के मुकाबले इनका दूध गुणहीन है। उसमें प्रोटीन विटामिन रोग अवरोधक तत्वों की कमी है। इस संकरित गोवंश का गोबर पतला व बदबूदार होता है जो ऊर्जा विभाग उर्वरक में भी पूर्ण उपयोगी नहीं है। बल्कि पर्यावरण को दूषित करता है। इसके बछड़े- बैल सुस्त व कमजोर होते हैं। जो भार ढोने व खेती कार्य में अयोग्य ( असमर्थ )हैं, केवल क़त्लखानों में ले जाकर काटे जाते हैं। इस प्रकार यह संकरित गोवंश हमारे देश के लिए किसी भी प्रकार से उपयुक्त नहीं है।
 गोवंश के संवर्धन एवं नस्ल सुधार हेतु-हमारा निवेदन- देश की प्रांतीय सरकारें अपनी ग्राम पंचायतों के सभी गांवों में भारतीय नस्ल के उत्तम साण्डों को पालने की उचित व्यवस्था करायें। अपने पशु चिकित्सा केंद्रों में चल रही विदेशी कृत्रिम गर्भधान को बंद कराकर स्वदेशी सांडो द्वारा प्राकृतिक गर्भधान को प्रोत्साहन देकर स्वदेशी नस्ल के गोवंश की वृद्धि करें। सभी गौशालाएं गोपालक/ किसान भाई अपने व देशहित में अधिक से अधिक स्वदेशी नस्ल के गोवंश का ही पालन करें। वर्तमान में अपनी देशी /विदेशी,दोगली  सभी गायों को का स्वदेशी नस्ल के उत्तम साण्डों से ही गर्भधान करावें जिसेसे भविष्य में संकरित गोवंश स्वदेशी नस्ल में परिवर्तित हो जाएगा।
 नस्ल सुधार हेतु स्वदेशी उत्तम नस्ल की पांच बछड़ियां दुधारू गायों हेतु व पांच बछड़े बलिष्ठ साण्डों के लिये पालने की व्यवस्था करें गायों का पर्याय दूध उनके बच्चों को पिलायें तभी उनसे उत्पन्न बच्चे स्वस्थ, बलिष्ठ होंगे, गायों की दूध देने की मात्रा में वृद्धि होगी, फलस्वरूप गोपालन आर्थिक रूप से लाभप्रद होने पर सभी नागरिक अधिक से अधिक वंश का पालन करने लगेंगे, वह कसाई के हाथ नहीं पड़ेगा, इससे लाखों गोवंश की रक्षा हो जायेगी।


Comments

Popular posts from this blog

श्रीमद् भागवत कथा कलश यात्रा में महिलाओं ने लिया भारीख्या में भाग

खोड़ा मंडल मे अनेकों शक्ति केंद्र के बूथों पर सुनी गई मन की बात

भारतीय मैथिल ब्राह्मण कल्याण महासभा संगठन मैथिल ब्राह्मणों को कर रहा है गुमराह