ओढ़ के तिरंगा क्यों पापा आएंगे (कौशलेंद्र वर्मा की कविता)
मर्मस्पर्शीय कविता एक बालक की जिसके फौजी पिता तिरंगा ओढ़ कर घर आए हैं।
-:ओढ़ के तिरंगा क्यों पापा आए हैं?:-
ओढ़ के तिरंगा क्यों पापा आए हैं?
माँ मेरा मन बात यह समझ ना पाए हैं,
ओढ़ के तिरंगा क्यों पापा आए हैं।
पहले पापा मुन्ना मुन्ना कहते आते थे,
टॉफिया खिलौने साथ में भी लाते थे।
गोदी में उठाकर खूब खिलखिलाते थे,
हाथ फेरर सर पर प्यार भी जताते थे।
पर ना जाने आज क्यों वह चुप हो गए,
लगता है कि खूब गहरी नींद सो गए।
नींद से पापा उठो मुन्ना बुलाए हैं,
ओढ़ के तिरंगे को क्यों पापा आए हैं।
फौजी अंकल लोगों की भीड़ घर क्यों आई है,
पापा का सामान साथ में क्यों लाई है।
साथ में क्यों लाई है वह मैडलों के हार,
आंख में आंसू क्यों सबके आते बार-बार।
चाचा मामा दादा दादी चीखते हैं क्यों,
मां मेरी बता वो सर को पीटते हैं क्यों।
गांव क्यों शहीद पापा को बताए हैं,
ओढ़ के तिरंगा क्यों पापा आए हैं।
मां तू क्यों है इतना रोती यह बता मुझे,
होश क्यों हर पल है खोती ये बता मुझे।
माथे का सिंदूर है क्यों है दादी पोछती,
लाल चूड़ी हाथ में क्यों बुआ तोड़ती।
काले मोतियों की माला क्यों उतारी है,
क्या तुझे मां हो गया समझना भारी है।
मां तेरा यह रूप मुझे ना सुहाय है,
ओढ़ के तिरंगे को क्यों पापा आए हैं।
पापा कहां हैं जा रहे अब यह बताओ मां,
चुपचाप से आंसू बहा के ना यूं सताओ मां।
क्यों उनको सब उठा रहे हाथों को बांधकर,
जय हिंद बोलते हैं क्यों कंधों पर लादकर।
दादी खड़ी है क्यों भला आंचल को भींच,
आंसू क्यों बहे जा रहे हैं आंखों को मींच कर।
पापा की राह में क्यों फूल सजाए हैं,
ओढ़ के तिरंगे को क्यों पापा आए हैं।
क्यों लकड़ियों के बीच में पापा लिटाए हैं,
सब कह रहे हैं लेने उनको राम आए हैं।
पापा यह दादा कह रहे तुमको जलाऊं मैं,
बोलो भला इस आग को कैसे लगाऊं मैं।
इस आग में समा के साथ छोड़ जाओगे,
आंखों में आंसू होंगे बहुत याद आओगे।
अब आया समझ माने क्यों आंसू बहाए थे,
ओढ़ के तिरंगा पापा घर क्यों आए थे।
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