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Showing posts from January, 2020

संस्कृति ही सभ्यता की जननी है

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*-:संस्कृति ही सभ्यता की जननी है:-* इस चित्र की कलात्मकता देखिये । दो माताऐे है, एक माया मिटटी की- एक काया की, एक निर्जीव- एक सजीव, दोनों के बीच रूह कांपा देने वाला अंतर हैं। ये वो देश है जहाँ र्निजीव मूर्तियों की पूजा में अरबों रुपये फूँक दिए जाते हैं. और जीवित माताओं को दूरदशा करके छोड़ देते है अरे बेवकूफों आखिरकार कब समझोगे इन पत्थर की मूर्तियों ने, इन भगवानों ने कभी किसी युग में हमारा कोई भला नहीं किया सिवाय इनको खड़ा करने वाले अधर्मियों, धूर्तों का भला करने के  लात मारो इन सब झूठ पर खड़ी सोचों को, छलावों को... नहीं कहता मैं संस्कृति को विसार दो ।  संस्कृति के साथ सभ्यता पर भी ध्यान दो। *✍ कौशलेंद्र वर्मा।*

चोर - चोर मौसेरे भाई

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*-:चोर-चोर मौसेरे भाई।:-* चोर-चोर मौसेरे भाई। एक नागनाथ है तो दुसरा सांप नाथ है। यही सच्चाई है। माना कि मोबाइल से बिना कारण पैसे कटे कई साल हो गया,  2014 के पहले तो खूब कटते थे, क्या सच में कांग्रेस की तरह  सभी कंपनिया भी चोर थी? कैश लेस को बढ़ावा देने के नाम पर एवं डिजिटल ट्रांजेक्शन के नाम पर गरीब एवं जरुरत मंदो के बैंक अकाउंट खाली कर देने का सिलसिला 2014 के बाद ही बढ़ा है। जिसका कंप्लेंट भी दर्ज नहीं होता है भारत सरकार में। *✍ कौशलेंद्र वर्मा।*

गुड़ खाने के बेहतरीन लाभ

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*-:गुड़ खाने के बे‍हतरीन लाभ:-*   ★ गन्ने के रस से गुड़ बनाया जाता है। गुड़ में सभी खनिज द्रव्य और क्षार सुरक्षित रहते हैं। ★ गुड़ का सेवन करने से शरीर में होने वाले कई प्रकार के रोग ठीक हो जाते हैं। मिठाई और चीनी की अपेक्षा गुड़ अधिक लाभकारी है। ★ गुड़ से कई प्रकार के पकवान बनाये जाते हैं जैसे- हलुआ, चूरमा तथा लपसी आदि। ★ गुड़ खाने से थकावट मिट जाती है। परिश्रमी लोगों के लिए गुड़ खाना अधिक लाभकारी है। मटके में जमाया हुआ गुड़ सबसे अच्छा होता है। ★ पुराना गुड़ का गुण : पुराना गुड़ हल्का तथा मीठा होता है। यह आंखों के रोग दूर करने वाला, भुख को बढ़ने वाला, पित्त को नष्ट करने वाला, शरीर में शक्ति को बढ़ाने वाला और वात रोग को नष्ट करने वाला तथा खून की खराबी को दूर करने वाला होता है। ★ अदरक के साथ गुड़ खाने से कफ खत्म होता है। हरड़ के साथ इसे खाने से पित्त दूर होता है तथा सोंठ के साथ गुड़ खाने से वात रोग नष्ट होता है। आधुनिक विज्ञान के अनुसार : 100 ग्राम गुड़ में लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग खनिज द्रव्य होता है। चीनी में खनिज द्रव्यों और क्षारों का अभाव होता है। इसलिए चीनी की अपेक्षा गुड़ खाना अधिक लाभकारी होता ह

धर्मात्मा मित्र

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इस पोस्ट को देखकर एक महान धर्मात्मा मित्र ने यह लिखा कि मुर्ती की पैर छूने से जीवन में कुछ भी हासिल नहीं होगा पैर ही छूना है तो अपनी मां की छूओ तो इन महान धर्म पुरुष से मैंने कहा।  मां बाप के चरण स्पर्श के उपरांत धर्म , सभ्यता, संस्कृति और माता, पिता, गुरु जन एवं बड़े बुजुर्गो ने निर्देश दिए कि जो सनातन संस्कृति की जननी व पोसन की धुरी है उस कामधेनु गाय रुपी गायत्री की सेवा में समर्पित हो जा। तो सर्व श्रेष्ठ ज्ञानी महोदय स्पष्ट कहें मैं राह भटक गया या गौ भक्ती करके कोई अपराध कर दिया।  *✍ कौशलेंद्र वर्मा।*

वेद सबके लिए है

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*-:वेद सबके लिये है:-* वेद सबके लिये है । मनुष्य मात्र के लिये । क्या आप जानते हैं? ------------------------ वेदों की प्रकांड 21 विदुषियां  प्रस्तुति: फरहाना ताज देवमाता अदिति देवमाता अदिति चारों वेदों की प्रकांड विदुषि थी। ये दक्ष प्रजापति की कन्या एवं महर्षि कश्यप की पत्नी थीं। इन्होंने अपने पुत्र इंद्र को वेदों एवं शास्त्रों की इतनी अच्छी शिक्षा दी कि उस ज्ञान की तुलना किसी से संभव नहीं थी, यही कारण है कि इंद्र अपने ज्ञान के बल पर तीनों लोकों का अधिपति बना। इंद्र का माता के नाम पर एक नाम आदितेय पडा। अदिति को अजर-अमर माना जाता है। देवसम्राज्ञी शची देवसम्राज्ञी शची इंद्र की पत्नी थीं, वे वेदों की प्रकांड विद्वान थी। ऋग्वेद के कई सूक्तों पर शची ने अनुसंधान किया। शचीदेवी पतिव्रता स्त्रियों में श्रेष्ठ मानी जाती हैं। शची को इंद्राणी भी कहा जाता है। ये विदुषी के साथ-साथ महान नीतिवान भी थी। इन्होंने अपने पति द्वारा खोया गया सम्राज्य एवं पद प्रतिष्ठा ज्ञान के बल पर ही दोबारा प्राप्त की थी। सती शतरूपा सती शतरूपा स्वायम्भुव मनु की पत्नी थीं। वे चारों वेदों की प्रकांड विदुषी थी। जल प्रलय के बा

अमृत/जहर का कहर

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*-:अमृत/जहर का कहर:-* आयुर्वेद में शहद को अमृत के समान माना गया हैं और मेडिकल साइंस भी शहद को सर्वोत्तम पौष्टिक और एंटीबायोटिक भंडार मानती हैं लेकिन आश्चर्य इस बात का हैं कि शहद की एक बूंद भी अगर कुत्ता चाट ले तो वह मर जाता हैं यानी जो मनुष्यों के लिये अमृत हैं वह *शहद कुत्ते के लिये जहर है*..!!! दूसरा # देशी_घी शुद्ध देशी गाय के घी को आयुर्वेद अमृत मानता हैं और मेडिकल साइंस भी इसे औषधीय गुणों का भंडार कहता हैं पर आश्चर्य ये हैं कि मक्खी घी नहीं खा सकती *अगर गलती से देशी घी पर मक्खी बैठ भी जाये तो अगले पल वह मर जाती है*। इस अमृत समान घी को चखना भी मक्खी के भाग्य में नहीं होता! # मिश्री .. इसे भी अमृत के समान मीठा माना गया हैं आयुर्वेद में हाथ से बनी मिश्री को श्रेष्ठ मिष्ठान्न बताया गया हैं और मेडिकल साइंस हाथ से बनी मिश्री को सर्वोत्तम एंटबायोटिक मानता है लेकिन आश्चर्य हैं कि अगर खर (गधे) को एक डली मिश्री खिला दी जाए तो कुछ समय पश्चात ही उसके प्राण पखेरू उड़ जाएंगे! *ये अमृत समान श्रेष्ठ मिष्ठान मिश्री गधा नहीं खा सकता हैं* !!! नीम के पेड़ पर लगने वाली पकी हुई #निम्बोली में सब रोगों को

गौ हत्या एक पाप

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*-:गौ हत्या एक पाप:-* भारतीय संविधान की धारा ४८ में गौवंश को संरक्षण दिया गया है | परन्तु सरकार स्वयं संविधान का उल्लंघन कर रही है | जब भारत गुलामीकी जंजीरों में जकडा था, तब लोकमान्य टिळक ने कहा की " भारत देश स्वंत्तत्र होते ही कलम की एक नोक से गौ-हत्या बंद कर दी जायेगी "| महात्मा गांधी कहते थे " गौ-हत्या देखकर मुझे ऐसा लागता है की मेरे आत्मा की हत्या हो रही है " |उन महान् पुरुषों सपने आज तक पूर्ण नही हो पाये और आज पूर्ण होनेकी बात तो दूर रही प्रतिवर्ष नये नये कत्तलखाने खोलकर गौवंश को कटवाकर उनके चमडें तथा उनके मांसकी बडी मात्र में तस्क्करी हो रही है | आज देश में हिंसा का तांडव नृत्य चल रहा है | जनता की और से गौ-वंश रक्षा हेतू अनशन मोर्चे संम्मेलन आयेदिन होते है, परंतु कोई सुनने वाला नही | सरकारी नीती के कारण कत्तलखानो में और घरोमें बडी मात्रा में गौ-वंश की अवैध्य कत्तल हो रही है | *✍ कौशलेंद्र वर्मा।*

समस्या/समाधान

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*-:समस्या/समाधान:-*  समस्या का समाधान इस बात पर निर्भर करता है कि हमारा सलाहकार कौन है ! ये बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि दुर्योधन, शकुनि से सलाह लेता था और अर्जुन, श्री कृष्ण से। *✍ कौशलेंद्र वर्मा।*

मानवीय सभ्यता

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मानवीय सभ्यता के जन्म गायत्री गायत्री गायत्री से परे कुछ भी नहीं है हमारा वैदिक ज्ञान ही विज्ञान है हमारी सभ्यता में जीने वाले पूर्वकाल के ऋषि ही रिसर्च हैं आज की परिपाटी ऐसी है मानवीय सभ्यता आज किसी भी बातों को बगैर वैज्ञानिकों के हाथो का मोहर लगाएं मानते नहीं कि इसमें सत्यता है इसलिए वैज्ञानिक शोध का एक अंश डालना पड़ा हकीकत यह है कि हमारी संस्कृति से बढ़कर हमारे वैदिक ज्ञान से बढ़कर कुछ है नहीं गायत्री परिवार मेघ यज्ञ यज्ञ पैथी चिकित्सा नामक पुस्तक का ही यह छोटा सा अंग है जो आपके बीच रखने का कोशिश किया गया है धन्यवाद। 🕉हवन चिकित्सा 🕉 एक वेबसाइट रिपोर्ट के अनुसार फ़्रांस के ट्रेले नामक वैज्ञानिक ने हवन पर रिसर्च की। जिसमे उन्हें पता चला की हवन मुख्यतः आम की लकड़ी पर किया जाता है। जब आम की लकड़ी जलती है तो फ़ॉर्मिक एल्डिहाइड नमक गैस उत्पन्न होती है जो की खतरनाक बैक्टीरिया और जीवाणुओ को मरती है तथा वातावरण को शुद्द करती है। इस रिसर्च के बाद ही वैज्ञानिकों को इस गैस और इसे बनाने का तरीका पता चला। गुड़ को जलने पर भी ये गैस उत्पन्न होती है। (२) टौटीक नामक वैज्ञानिक ने हवन पर की गयी अपनी रिसर्

संत, भगवत विग्रह और गाय का कोई मोल नहीं होता

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संत,भगवद विग्रह और गाय का कोई मोल नहीं होता। -------------------------------------------------- एक बार श्री आपस्तम्ब ऋषि  भगवान नर्मदा जी के अगाद जल में समाधि लगा कर तप में निरत थे।संयोग से वे मछुऒ के जाल में फंस गए। मछुए जब उनको बाहर निकाले तो वे इन परम तपस्वी को देख कर डर गए। ऋषि ने कहा डरने की कोई बात नहीं,तुम लोगों की तो यह जीविका है। मछली की जगह तो मै ही फंस गया तो तुम लोग मुझे बेच कर उचित मुल्य प्राप्त करो। मल्लाहों की समझ में नहीं आ रहा था।कि वे क्या करे? उसी समय राजा नाभाग जी यह समाचार पाकर वहां आये और मुनि की पूजा एवम प्रणाम कर हाथ जोड़ कर बोले-महाराज!कहिये,मै आप की कौन सी सेवा करूँ? ऋषि ने कहा-आप हमारा उचित मुल्य अर्पण करो।। राजा ने कहा-मै उन्हें एक करोड़ मुद्रा या अपना सारा राज्य देने को प्रस्तुत हूं। ऋषि ने कहा यह भी हमारा उचित मुल्य नहीं है। अब तो राजा चिंता में पड़ गए। भगवन इच्छा से उसी समय महर्षि लोमश जी वहां आये। जब उनको सारी बात बताई तो वो बोले-राजन!आप इनके बदले इन मछुआरों को एक गाय दे दो। साधू ब्राह्मण और गाय तथा भगवद विग्रह का कोई मोल नहीं होता। ये तो अनमोल हैं। यह न

संगत का प्रभाव

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*-:संगत का प्रभाव:-* एक मादा शुक ने दो जुड़वा बच्चों को जन्म दिया। मालिक उन दोनों को बेचने बाजार पहुंचा, जिनमें से एक को डाकू सरदार ने व दूसरे को एक महंत ने खरीदा। एक बार उस राज्य का राजा शिकार के दौरान रास्ता भटकते हुए एक बस्ती के पास पहुंचा तो पिंजरे में बैठा एक तोता आवाज देने लगा- ‘कोई अमीर आ रहा है, लूटो-लूटो, पकड़ो-पकड़ो, मारो-मारो।’  यह सुनते ही राजा सावधान हो गया। उसने तुरंत अपना घोड़ा दूसरी दिशा में मोड़ लिया। थोड़ी दूरी पर राजा दूसरी बस्ती में पहुंचा। घोड़े की टाप सुनकर दूसरा तोता पिंजरे में बोल उठा- ‘पधारिए अतिथि देवता, ऋषि आश्रम में आपका स्वागत है।’ राजा ने रात भर वहां विश्राम किया। सुबह राजा ने मंत्री से पूछा- ‘‘एक तोते ने लूटने, मारने की आवाज में पुकारा, दूसरे ने अतिथि देवो भव: के स्वर में स्वागत किया। दोनों में इतना अंतर कैसे आया होगा?’’ मंत्री ने तोते वाले से जानकारी ली और बताया- ‘‘राजन, ये दोनों तोते सगे भाई हैं। किंतु एक को डाकू सरदार ने खरीद लिया। उसे डाकुओं जैसे संस्कार मिले। दूसरे को एक महंत जी ने खरीद लिया। उसे ऋषि आश्रम में अतिथि सत्कार के संस्कार मिले, इसलिए आचरण

स्वास्थ्य और भारतीय रहन सहन

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💪 *स्वास्थ्य और भारतीय रहन सहन* 🇮🇳 *भाई जूती बाहर निकाल कर अंदर आणा घर में* अगर किसी को यह बोल दिया जाए तो? तो क्या सभी कहेंगे कि साला बुढा 19वीं सदी की बात कर रहा है। नंगे पैर की बोल रहा है। ठंड लग गई तो, बिमार करेगा। कैसा unhygienic old fashioned मकान मालिक है ये😏😟!! आदि आदि। लेकिन जब मैं 1975 - 1976 की बात याद करता हुं तो तस्वीर कुछ और थी। मैं सात आठ साल का मासूम सा नाजूक सा बच्चा था और मेरा स्कुल में दाखिला हो चुका था। स्कूल में टाट पर जमीन पर बिठाया जाता था और सर्दी हो या गर्मी नंगे पैर ही स्कूल में भेजा जाता था। सर्दियों में बिवाई फटना आम बात थी और गर्मियों की तो पूछो ही मत। छुट्टी के वक्त इतनी गर्म धरती होती थी कि जब पैर जलने लगते तो भाग कर कहीं गोबर या घास फूस पर पैर रखना पड़ता था। कभी ननिहाल जाते थे तो नये मोजे, चप्पल आदि मिलते थे। लगभग सभी के साथ ये होता था। अब दूसरे पहलू पर आते हैं। मेरे घर कि आर्थिक स्थिति। दादा गिरदावर, पापा भी सरकारी नौकरी में तथा घर का जमींदारा भी था जो चाचा लोग संभालते थे। कहने का मतलब गरीबी तो बिल्कुल नहीं थी। दादी 52 गज के घाघरे पहनती थी व टूम ठेक

षटतिला एकादशी विशेष:-

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*-:षटतिला एकादशी विशेष:- * 〰️〰️🔸〰️〰️🔸〰️〰️ षटतिला एकादशी का महत्व   〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️ माघ माह की कृष्ण पक्ष की एकादशी को षटतिला एकादशी व्रत रखा जाता है। पुराणों के अनुसार इस व्रत के प्रभाव से इससे मनुष्य के अनजाने में किये सभी पाप समाप्त हो जाते है तथा उसे स्वर्ग की प्राप्ति होती है जो व्यक्ति श्रद्धा भाव से षटतिला एकादशी का व्रत रखते हैं, उनके सभी पापों का नाश होता है. इसलिए माघ मास में पूरे माह व्यक्ति को अपनी समस्त इन्द्रियों पर काबू रखना चाहिए. काम, क्रोध, अहंकार, बुराई तथा चुगली का त्याग कर भगवान की शरण में जाना चाहिए। षटतिला एकादशी व्रत विधि  〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️ एक बार दालभ्य ऋषि ने पुलस्त्य ऋषि से पूछा कि मनुष्य कौन सा दान अथवा पुण्य कर्म करे जिससे इनके सभी पापों का नाश हो. तब पुलस्त्य ऋषि ने कहा कि हे ऋषिवर माघ मास लगते ही मनुष्य को सुबह स्नान आदि करके शुद्ध रहना चाहिए. व्यक्ति पुष्य नक्षत्र में तिल तथा कपास को गोबर में मिलाकर उसके 108 कण्डे बनाकर रख लें. माघ मास की षटतिला एकादशी को सुबह स्नान आदि से निवृत होकर स्वच्छ वस्त्र धारण करें. व्रत करने का संकल्प करके भगवान विष्णु जी

वर्ण व्यवस्था

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*-:वर्ण व्यवस्था:-* सर्राफा बाजारों में अधिकांश बंगाली मुस्लिम कारीगर काम करते हैं  जिसमें गलाई पोलिस छिलाई इत्यादि कार्यों पर  आज उनका एक छत्रराज हैं  जिसके लिए वह धन के साथ छीदत के रुप में  सोना लेते हैं कुछ समय विस्वास जमा लेने पर वह दुकानदारों का सोना लेकर भी भाग जाते हैं। ऐसे सभी कारीगरों का बहिष्कार करो और अब तो मुस्लमानों तक ने सुनार की दुकानें खोल ली हैं। सभी स्वर्णकार यह सारे कार्य अपने बच्चों को सिखाऐं जैसा की भगवान राम के आदेश से श्री अजमीढ़ जी द्वारा ब्रह्मा जी से यह कला प्राप्त हुई तब यह दूसरों तक कैसे पहुंची इसके जिम्मेदार आप ही हैं... वर्णाश्रम व्यवस्था अनुसार यह कार्य करने के लिए स्वर्णकारों के पास अधिकार सुरक्षित हैं... जैसे ब्राह्मण, नाई, बढ़ई, कुम्हार, लोहार, चर्मकार, इत्यादि सभी के कार्यक्षेत्र सुरक्षित हैं सनातन धर्म में  यह व्यवस्था जातिगत आरक्षण ही हैं.... जिसका जो जातिवर्ण हैं उसी हिसाब से उसका कार्यक्षेत्र अतः स्वर्णकारों को ही नहीं बाकी सभी हिन्दूऔं को भी अपनी जातिवर्ण के अनुरूप कार्य करना चाहिए  यह आपका जन्मसिद्ध अधिकार है... जिसे कौई सरकार या अन्य आप से नहीं छ

अनुभव और समझ

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*अनुभव और समझ* *एक बहुत विशाल पेड़ था। उस पर कई हंस रहते थे। उनमें एक बहुत सयाना हंस था।* बुद्धिमान और बहुत दूरदर्शी। सब उसका आदर करते ‘ताऊ’ कह कर बुलाते थे। एक दिन उसने एक नन्ही-सी बेल को पेड़ के तने पर बहुत नीचे लिपटते पाया।  ताऊ ने दूसरे हंसों को बुलाकर कहा- *‘‘देखो !! उस बेल को नष्ट कर दो। एक दिन यह बेल हम सबको मौत के मुंह में ले जाएगी।’’*   एक युवा हंस हंसते हुए बोला- *‘‘ताऊ यह छोटी-सी बेल हमें कैसे मौत के मुंह में ले जाएगी?’’*  सयाने हंस ने समझाया- ‘‘आज यह तुम्हें छोटी-सी लग रही है। धीरे-धीरे यह पेड़ के सारे तने को लपेटा मारकर ऊपर तक आएगी। फिर बेल का तना मोटा होने लगेगा और पेड़ से चिपक जाएगा, तब नीचे से ऊपर तक पेड़ पर चढऩे के लिए सीढ़ी बन जाएगी। कोई भी शिकारी सीढ़ी के सहारे चढ़कर हम तक पहुंच जाएगा और हम मारे जाएंगे।’’   *किसी हंस ने ताऊ की बात को गंभीरता से नहीं लिया।* समय बीतता रहा। बेल लिपटते-लिपटते ऊपरी शाखाओं तक पहुंच गई। बेल का तना मोटा होना शुरू हुआ और सचमुच ही पेड़ के तने पर सीढ़ी बन गई। *एक दिन जब सब हंस दाना चुगने बाहर गए हुए थे तब एक बहेलिया उधर आ निकला। पेड़ पर बनी सीढ

अनोखा रिश्ता

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*-:अनोखा रिश्ता:-* *एक बच्चे को आम का पेड़ बहुत पसंद था।*  *जब भी फुर्सत मिलती वो आम के पेड के पास पहुच जाता।*  *पेड के उपर चढ़ता,आम खाता,खेलता और थक जाने पर उसी की छाया मे सो जाता।*  *उस बच्चे और आम के पेड के बीच एक अनोखा रिश्ता बन गया।* *बच्चा जैसे-जैसे बडा होता गया वैसे-वैसे उसने पेड के पास आना कम कर दिया।*  *कुछ समय बाद तो बिल्कुल ही बंद हो गया।* *आम का पेड उस बालक को याद करके अकेला रोता।* *एक दिन अचानक पेड ने उस बच्चे को अपनी तरफ आते देखा और पास आने पर कहा,* *"तू कहां चला गया था? मै रोज तुम्हे याद किया करता था। चलो आज फिर से दोनो खेलते है।"* *बच्चे ने आम के पेड से कहा,* *"अब मेरी खेलने की उम्र नही है*  *मुझे पढना है,लेकिन मेरे पास फीस भरने के पैसे नही है।"* *पेड ने कहा,*  *"तू मेरे आम लेकर बाजार मे बेच दे,* *इससे जो पैसे मिले अपनी फीस भर देना।"* *उस बच्चे ने आम के पेड से सारे आम तोड़ लिए और उन सब आमो को लेकर वहा से चला गया।* *उसके बाद फिर कभी दिखाई नही दिया।*  *आम का पेड उसकी राह देखता रहता।* *एक दिन वो फिर आया और कहने लगा,* *"अब मुझे नौकरी मिल गई ह

हमारे पूर्वजों ने दिया वरदान

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हमें हमारे पुर्वजों ने वरदान स्वरुप गौ माता के रुप में हमें गौसेवा का संस्कार दे गए ।जो घास और  भूष खा कर हमें अमृत तुल्य दुग्ध प्रदान करती है।                                                             पर अब क्या करें । हमारे  पास गौ संरक्षण के लिए बक्त है नहीं ।  तो हम ये गौ माता कि मुर्तीयाँ ही छोड़  जाएंगे अपने  बच्चों के लिए?                                           क्योंकि धरातल की सच्चाई यही है कि भारत सरकार ब्रिटिश सरकार शासन से अब तक भारत की पावन भूमि पर गौ हत्या रोकने में असमर्थ रही है, और बड़े  पैमाने पर भारत भूमि से भारतीय गोवंश का नाश हो रहा है। तो क्या हमारे आने वाले वंशज को पुस्तको अखबारों में और मूर्तियों में स्थापित गौ का चरित्र चित्रण से ही  दूध प्राप्त होगा?  विषय विचारणीय  है।  आपके समर्थन का आकान्छी कौशलेन्द्र वर्मा ९८६८००८७४८  गौ लोक परिवार।

अव्यवस्था

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*-:अव्यवस्था:-*  जिस #जनसंख्या विस्फोट के चलते  वैश्विक जगत के प्राकृतिक संसाधन सिमट रहे हों, दुनियां #प्रदूषण से जहरीली हो रही हो, मनुष्य जीवन जीने की मूलभूत जरूरतों को पूरी करने के लिए अपनत्व व अपनों को खो रहे हों।            मनुष्य #मनुष्य को रौंदकर भी जिंदगी को पैर रखने की जगह न दे पा रहा हो।             ऐसे में यदि कोई बच्चे पर #बच्चा पैदा करने की होड़ में लगा रहे तो उसे #विश्वद्रोह ही कहा जायेगा।           अपने #भारत के संदर्भ में दो से अधिक संतानों को जन्म देने वाले #नागरिक के ऊपर भी वही आरोप लगे, तो आश्चर्य क्यों है?       #युगनिर्माण आंदोलन के प्रणेता पं. #श्रीरामशर्माआचार्य ने तो अस्सी के दशक में ही न केवल संतान बढ़ाना देश के साथ घात बताया था। अपितु अपने मुख्यालय #शांतिकुंज में निवास करने वाले हर नवविवाहित जोड़ों को एक #संतान ही जन्म देने पर सहमत कर संकल्पित कराया था।    उनके आवाहन पर शांतिकुंज से लेकर देशभर में उनके लाखों शिष्यों ने इस संकल्प को कठोरता से अपने जीवन में पालन किया। पूज्यवर के #महाप्रयाण के बाद उनके अनेक निष्ठावान शांतिकुंज परिसर  वासी आज भी उन संकल्पों पर दृढ़ हैं

जय श्री राम

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*-:जय श्री राम:-*  हम शरण प्रभु तेरी आये है अपना झुकाने को ये सिर, कर दो उधार प्रभु मेरा अपनी डाल के इक नजर, हम शरण प्रभु तेरी आये है अपना झुकाने को ये सिर, इक नजर तेरी खिलाती है जिंदगी की कली, तेरी नजरो से ही होती है रोशन हर गली, मुझको ये आस है मुझपे भी होगी तेरी मेहर, हम शरण प्रभु तेरी आये है अपना झुकाने को ये सिर, हारने वालो को बस एक ठिकाना है तेरा, जिसको बस एक सहारा है प्रभु देख तेरा, उस पे पड़ जाती है बाबा तेरी दीदार नजर हम शरण प्रभु तेरी आये है अपना झुकाने को ये सिर, गलती जो भी करि है मैंने उसे मानता हु, तेरे दरबार के बारे में थोड़ा जानता हु, थाम लो हाथ प्रभु मेरा लेलो मेरी खबर, हम शरण प्रभु तेरी आये है अपना झुकाने को ये सिर,..... *✍ कौशलेन्द्र वर्मा।*

प्रकृति की ओर

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*प्रकृति की ओर...* पैसे से कभी भी #स्वास्थ्य और #खुशियां नहीं मिलती।। सोनाली बेंद्रे - कैंसर अजय देवगन - लिट्राल अपिकोंडिलितिस  (कंधे की गंभीर बीमारी) इरफान खान - कैंसर मनीषा कोइराला - कैंसर युवराज सिंह - कैंसर सैफ अली खान - हृदय घात रितिक रोशन - ब्रेन क्लोट अनुराग बासु - खून का कैंसर मुमताज - ब्रेस्ट कैंसर शाहरुख खान - 8 सर्जरी  (घुटना, कोहनी, कंधा आदि) ताहिरा कश्यप (आयुष्मान खुराना की पत्नी) - कैंसर राकेश रोशन - गले का कैंसर लीसा राय - कैंसर राजेश खन्ना - कैंसर, विनोद खन्ना - कैंसर नरगिस - कैंसर फिरोज खान - कैंसर टोम अल्टर - कैंसर... ये वो लोग हैं या थे-  जिनके पास पैसे की कोई कमी नहीं है/थी! खाना हमेशा डाइटीशियन की सलाह से खाते है। दूध भी ऐसी गाय या भैंस का पीते हैं  जो AC में रहती है और बिसलेरी का पानी पीती है। जिम भी जाते है।  रेगुलर शरीर के सारे टेस्ट करवाते है।  सबके पास अपने हाई क्वालिफाइड डॉक्टर है। अब सवाल उठता है कि आखिर  अपने शरीर की इतनी देखभाल के बावजूद भी इन्हें इतनी गंभीर बीमारी अचानक कैसे हो गई। क्योंकि ये प्राक्रतिक चीजों का इस्तेमाल  बहुत कम करते है।  या मान लो बिल्क

सुरभि क्षेत्र में हुआ ऋषि संगम

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*-:सुरभि क्षेत्र में हुआ ऋषि संगम :-* (श्रीराम भक्ति की साधना- हनुमान कथामृत) अपनी बातें कहते हुए ऋषि विश्वामित्र के मुख पर भाव की रेखाएँ गहरी हो गई। हनुमान ने उनकी ओर देखा और सोचने लगे कि कठोर कर्मों में रत रहने वाले महातपस्वी, अमित तेजस्वी महर्षि विश्वामित्र का अंत:करण पवित्र भावनाओं का सरोवर है, जिसमें भक्ति की ऊर्मियाँ सर्वदा अठखेलियाँ करती रहती हैं। इन चिंतन तरंगों के साथ हनुमान ने विचार किया-शुद्ध और शुभ्र भावनाओं का नैसर्गिक परिणाम तो एक ही है-भक्ति। फिर भला ब्रह्मर्षि विश्वामित्र इसकी सघनता से विलग कैसे रह सकते हैं? वैसे भी ब्रह्मर्षि तो आदिशक्ति के कृपापात्र साधक हैं। भगवती जगन्माता की उन पर अविराम कृपा है। ऐसे में भगवती से उन्हें भक्ति का वरदान मिला हुआ हो तो अचरज क्या है? भक्ति का स्पर्श स्वभावतः हनुमान को भावविभोर कर देता था। महर्षि की संगति, सान्निध्य और उनके सत्संग में वे स्वयं को गौरवान्वित अनुभव कर रहे थे। फिर भी अभी कुछ बचा हुआ था। इस तत्त्व को समझते हुए महर्षि विश्वामित्र बोले-"वत्स! यह मिथिला भूमि है। मायामयी की माया, तत्त्वमयी की तत्त्वदृष्टि, उन महाईश्वरी की क

हटिये नहीं तो टनका देंगे:-

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*-:हटिये नहीं तो टनका देंगे:- * पुलिस लाइन घूमने के दौरान किसी भी पुलिसकर्मी ने न तो उन्हें पहचाना और न ही टोका। बाहर निकलने पर देखा कि दो महिला पुलिसकर्मी ऑटोमेटिक राइफल लेकर जा रही थीं। उन्होंने पूछा कि गोली चलाने आता है तो महिला पुलिसकर्मी अनुराधा कुमारी ने कहा कि आता है। डीजीपी ने पूछा कोई राइफल छीनकर भाग जाएगा तो क्या करोगी। जवाब मिला- अभी 45 गोली खाली करके आए हैं। डीजीपी के लगातार सवाल से दोनों महिला पुलिसकर्मी झल्ला गईं और कहा- हटते हैं कि नहीं। बात ऐसी है कि बिहार के डीजीपी गुप्तेश्वर पांडे सोमवार सुबह इंटरसिटी ट्रेन से भागलपुर परिसदन पहुंचे। उन्होंने डीआईजी और एसएसपी समेत सभी अधिकारियों को सुबह 6 बजे आराम करने की बात कहकर वापस कर दिया लेकिन ट्रैक सूट और माफलर डालकर वे पुलिस केन्द्र के लिए निकल पड़े। वही डीजीपी ने फिर कहा- तुमको गोली चलाना नहीं आता है। इस बात पर दोनों पोजिशन में आ गईं और कहा - हटिये नहीं तो टनका देंगे। डीजीपी ने कहा, हमको पहचानती हो तो एक महिला जवान ने कहा कोई भी हों, जल्दी हटिए और पोजिशन ले लिया। तब जाकर डीजीपी ने अपना परिचय दिया। इनता सुनकर दोनों ने सॉरी बोला

भोजन

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*-: भोजन:-* हम क्या/कितना खाते हैं, उससे भी ज्‍यादा महत्‍वपूर्ण यह है कि हम उसे किस भाव-दशा में खाते हैं। हम आनंदित होकर खाते हैं, या दुखी होकर खाते हैं, उदास अवस्था में खाते हैं, चिंता में खाते हैं, या क्रोध से भरे हुए खाते हैं, या मन मार कर खाते हैं। *अगर हम चिंता में खाते हैं, तो श्रेष्‍ठतम भोजन के परिणाम भी ज़हरीले (poisonous) होंगे और अगर हम अपने आनंद में खाते हैं, तो जहर का परिणाम भी कमतर होने लगता है। खाना खाते समय हमारी भावदशा—आनंदपूर्ण, प्रसाद पूर्ण हो तो भोजन हमारे शरीर में अमृत समान कार्य करता है। अमूमन परिवार में भोजन के समय ही बात करने, अपने मत/निर्णय/पक्ष बताने के लिए सही समय मानते हैं, जिससे हमारा सारा जीवन ही विषाक्त हो जाता है। हम दिनभर की चिंता में/राजनैतिक पक्ष-विपक्ष/निंदा-चुगली/शिकायत या भोजन में ही कमी निकालने इत्यादि जैसे कार्य करके, न केवल भोजन, अपितु अपने पूरे जीवन की सारी भावदशा को ही रूग्ण किये जा रहे हैं। यदि भोजन बनाने, करने और कराने वालों के मन प्रसन्न हों और वर्तमान समय में रहकर, भोजन उगाने वाले/बनाने वाले/कमाने वाले के प्रति धन्यवाद-भाव से परिपूर्ण होकर

भारतीय स्वतंत्रता संग्राम, नेता जी सुभाष चंद्र बोस और जापान पर एट मी हमला

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*भारतीय स्वतंत्रता संग्राम, नेताजी सुभाष चंद्र बोस और जापान पर ऐटमी हमला* आज आपको एक कहानी सुनाता हूँ और वह कहानी विश्व के हर हिस्से से जुड़ी हुई है अतः एक एक घटना को बड़े ध्यान से देखना होगा। भारतीय स्वतंत्रता संग्राम कोई एक दिन की कहानी नहीं था, यह एक लम्बा वैचारिक युद्ध था जो आज भी चल रहा है। लेकिन आज कहानी में बस एटम बम का उदय व उस का जापान पर प्रयोग और उसके भारतीय स्वतंत्रता संग्राम से क्या रिश्ता था, सिर्फ उसी की कहानी बताना चाहता हूँ। बात 17 दिसंबर 1938 में जर्मनी से शुरू होती है जब जर्मन वैज्ञानिक ओट्टो हाह्न व सहायक फ्रीट्ज स्ट्रासमैन ने नाभिकीय विखंडन सिंद्धांत से नाभिकीय उर्जा को खोज निकाला तथा जनवरी 1939 में श्रीमती लिजे माईटनर व उनके भतीजे ओट्टो रॉबर्ट फ्रिस्च ने उस को वैज्ञानिक थ्योरी के रुप में संपादित कर दिया। उन दिनों इंगलैंड का दबदबा सारी दुनिया पर कायम था और जब यह नाभिकीय उर्जा की बात इंगलैंड पहुंची तो ...   बस बस यहीं से दुनिया का ध्यान कहीं और भटका दिया गया। उन दिनों तक यूरोप में छोटे मोटे झगड़े चलते ही रहते थे तथा उसी 1939 में जर्मनी की पोलैंड से झडप चल रही थी। चालाक

गौ विज्ञान मंत्रालय का बनेगा

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*गौविज्ञान मंत्रालय पक्का बनेगा* अपनी आने वाली पीढ़ियों के स्वस्थ,सफल एवं सुरक्षित भविष्य के लिए देसी स्थानीय मूल नस्ल की भारतीय गाय बचे। वह गाय गौशालाओं से नहीं गौपालकों द्वारा गौपालन से बचेगी।  *गौपालन व गौपालकों पर केंद्रित नीति नियम व योजनाएं बनें। गाय को पशु मंत्रालय नही स्वास्थ्य विज्ञान पर आधारित स्वतंत्र राष्ट्रीय गौविज्ञान मंत्रालय भारत सरकार बनाये*। सरकारों द्वारा गौविज्ञान मंत्रालय बनना अति आवश्यक है,क्योंकि स्वास्थ्य सहित समस्त समस्याओं का समाधान केवल सनातन धर्म अर्थात सनातन विज्ञान व गौविज्ञान में ही निहित है और सनातन विज्ञान का आधार गो विज्ञान है। *भारतीय देसी गाय को पशु समझने वाला इस धरती का सबसे बड़ा मूर्ख इंसान हैं। मातृत्व से अभिभूत गौ माता स्वास्थ्य ज्ञान विज्ञान संबंध सामाजिक सरोकार आदि संपूर्ण जीवन का आधार है*। इसलिए हमारे सनातन ऋषियों ने गौमाता को जन्मपूर्व/गर्भधारण से मृत्युपर्यन्त जीवन से जोड़कर रखा। आज आधुनिक विज्ञान द्वारा भी "गावो विश्वस्य मातरः" गऊमाता के सार्वभौमिक उपकार को स्वीकार किया है। भारत को विश्वगुरु बनाने में गौविज्ञान मंत्रालय की भूमिका प

केवल भारत में ही जाति व्यवस्था थी

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*-: केवल भारत में ही जाति व्यवस्था थी?;-*     हम भारतीयों के साथ एक समस्या है हम लोग स्वभाव से खोजी नहीं है हम चाहते हैं कि हमें कोई बैठे बैठे तथ्य बताएं और उन तथ्यों को हम घोट कर पी जाए विगत 100 वर्षों से भारतवर्ष के साथ एक बड़ा ही अमानवीय व्यवहार किया गया है भारत के अंदर जाति व्यवस्था को कलंक बताकर भारत को पिछड़ा हुआ साबित करने की कोशिश की जाती रही है आज भी विदेशी मीडिया में हर हफ्ते कोई ना कोई ऐसा समाचार छपता रहता है जिसमें किसी भारतीय दलित के साथ अमानवीय व्यवहार का वर्णन होता है दोष दिया जाता है भारतीय जाति व्यवस्था को   लेकिन क्या 7000 वर्ष पुराना समाज इतना भी सक्षम नहीं था कि वह जाति व्यवस्था जैसी कुरूप चीज को अपने भीतर से निकाल कर सके ? खैर यह इस लेख का विषय नहीं है इस कारण इस पर नहीं लिख पाऊंगा। भारतीय समाज के साथ-साथ जाति व्यवस्था पूरे विश्व में फैली हुई थी और इसका प्रत्यक्ष प्रमाण हमारे पास उपलब्ध है किंतु केवल भारतीय समाज को ही ही जाति व्यवस्था के कलंक से दूषित किया जाता है आपने सुना होगा कि जब भी आप किसी सरकारी नौकरी के लिए आवेदन करते हैं तब अक्सर आपको आरक्षण देने के लिए पू

मुनक्का

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*-:मुनक्का:-* यह ठमैग्नीशियम, पोटेशियम और आयरन का पॉवर हाउस कहा जाता है। इसे भीगा हुआ खाने से शरीर में कैंसर कोशिकाएं नहीं बढ़ती हैं, जिससे आप इस बीमारी से बचे रहते हैं। साथ ही इसका सेवन एनीमिया, किडनी स्टोन, स्किन प्रॉब्लम्स और पेट की दिक्कतों से भी छुटकारा दिलाता है। *✍ कौशलेन्द्र वर्मा।*

अलसी के बीज

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*-:अलसी के बीज:-* यह ओमेगा- 3 फैटी के अलावा प्रोटीन, आयरन का भी अच्छा स्त्रोत हैं। इसको भिगोकर खाने से शरीर का बैड कोलेस्ट्रोल कम हो जाता है और दिल स्वस्थ रहता है। साथ ही इससे मेनोपॉज के दौरान होने वाली समस्या भी कम होती हैं। *✍ कौशलेन्द्र वर्मा।*

खसखस

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*-:खसखस:-* थियामिन और पैंटोथेनिक एसिड से भरपूर खसखस का पूरा फायदा भी तभी मिलेगा जब आप इसे भिगोकर खाएंगे। इससे वजन कंट्रोल में रहता है और कई समस्याओं से भी बचे रहते हैं। *✍ कौशलेन्द्र वर्मा।*

मेथी दाना

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*-:मेथी दाना:-* फाइबर और फॉस्फोरस से भरपूर मेथी दाना डायबिटीज मरीजों के लिए एक अच्छी औषधी है। साथ ही इससे दांत व हड्डियां मजबूत होती हैं। इसके अलावा नियमित रूप से इसका पानी पीने से किडनी स्टोन भी निकल जाता है। इतनी ही नहीं, इन्हें भिगोकर खाने से महिलाओं में पीरियड्स के दौरान होने वाला दर्द भी कम होता है। *✍ कौशलेन्द्र वर्मा।*

अंकुरित मूंग दाल

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*-: अंकुरित मूंग दाल:-* यह प्रोटीन, फाइबर और विटामिन बी से भरपूर होती है। इसे खाने से पेट में बनी कब्ज और गैस की समस्या दूर होती है। इससे हाई ब्लड प्रेशर कंट्रोल रहता है। साथ ही यह कोलेस्ट्राल लेवल को भी नियंत्रित करता है।  *✍ कौशलेन्द्र वर्मा।*

सौंफ

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*-:सौंफ:-* इसको भिगोकर खाने या इसका पानी पीने से यूरिन प्रॉब्लम से बचाव होता है क्योंकि इसमें डाइयूरेटिक प्रॉपर्टीज होती हैं। जिससे पेसाव से जुड़ी समस्याएं दूर रहती हैं। इतना ही नहीं इससे पाचन भी दुरुस्त रहता है और आंखों की रोशनी तेज होती है। *✍ कौशलेन्द्र वर्मा।*

अंजीर

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*-:अंजीर:-* रोजाना 3 से 5 भिगी हुई अंजीर खाने से कब्ज की समस्या दूर होती है। साथ ही दिल की बीमारियों की रोकथाम करते हैं। इसके अलावा इसमें कैल्शियम पाया जाता है जो हड्डियों को मजबूत बनाता है।से *✍ कौशलेन्द्र वर्मा।*

बादाम

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*-: बादाम:-* इन्हें भिगोकर खाने से आईज की रोशनी और दिमाग तेज होता है। साथ ही इससे कैंसर जैसी कई गंभीर बीमारियों का खतरा भी कम होता है।  *✍ कौशलेन्द्र वर्मा।*

नेताजी सुभाष चंद्र बोस और कानपुर

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*-:नेता जी सुभाषचन्द्र बोस और कानपुर:-* ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~ नेता जी सुभाषचन्द्र बोस का कानपुर से गहरा नाता रहा | शहर के कांग्रेसी व स्वतंत्रता संग्राम सेनानी  डा. जवाहरलाल रोहतगी के सिविल लाइन आवास पर नेता जी ने प्रवास किया था और डा. जवाहरलाल जी ने उर्सला हास्पिटल मे उनकी चिकित्सा चर्या भी करायी थी | यह बात  १९३९ मे त्रिपुरी कांग्रेस अधिवेशन मे बीमार होने के बाद कानपुर मे इलाज हेतु रुकने की है |डा. जवाहरलाल रोहतगी अभिनंदन ग्रंथ मे उक्त यात्रा के चित्र प्रकाशित है | १ जनवरी १९४० ई० सुभाषचन्द्र बोस रामगंज ( नौघड़ा,कानपुर ) मे पधारे और सुभाष आदर्श पुस्तकालय का शुभारंभ किया था |              उन्नाव के पंडित विश्वम्भरदयाल त्रिपाठी के आग्रह पर सुभाष चन्द्र बोस जी उन्नाव आये और माकूर के मार्क्सनगर मे विशाल सभा को संबोधित किया संभवतः उसी सभा मे फारवर्ड ब्लाक की घोषणा हुई थी और सुभाषचन्द्र बोस संस्थापक अध्यक्ष व विश्वम्भरदयाल त्रिपाठी संस्थापक मंत्री बने थे | उन्नाव डाकबंगले का सुभाष जी व विश्वम्भरदयाल त्रिपाठी का यादगार चित्र है | विश्वम्भरदयाल जी ने उन्नाव मे महाविद्यालय खोला था जो आज का दयान

जीवन चलने का नाम

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*-:जीवन_चलने_का_नाम:-* जीवन चलने का नाम":सरला नाम की एक महिला थी। रोज वह और उसके पति सुबह ही काम पर निकल जाते थे। दिन भर पति ऑफिस में अपना टारगेट पूरा करने की ‘डेडलाइन’ से जूझते हुए साथियों की होड़ का सामना करता था। बॉस से कभी प्रशंसा तो मिली नहीं और तीखी-कटीली आलोचना चुपचाप सहता रहता था। पत्नी सरला भी एक प्रावेट कम्पनी में जॉब करती थी। वह अपने ऑफिस में दिनभर परेशान रहती थी। ऐसी ही परेशानियों से जूझकर सरला लौटती है। खाना बनाती है। शाम को घर में प्रवेश करते ही बच्चों को वे दोनों नाकारा होने के लिए डाँटते थे पति और बच्चों की अलग-अलग फरमाइशें पूरी करते-करते बदहवास और चिड़चिड़ी हो जाती है। घर और बाहर के सारे काम उसी की जिम्मेदारी हैं।  थक-हार कर वह अपने जीवन से निराश होने लगती है। उधर पति दिन पर दिन खूंखार होता जा रहा है। बच्चे विद्रोही हो चले हैं। एक दिन सरला के घर का नल खराब हो जाता है। उसने प्लम्बर को नल ठीक करने के लिए बुलाया। प्लम्बर ने आने में देर कर दी। पूछने पर बताया कि साइकिल में पंक्चर के कारण देर हो गई। घर से लाया खाना मिट्टी में गिर गया, ड्रिल मशीन खराब हो गई, जेब से पर्स

नारायण को जाने

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*-: नारायण को जानें;-* जब अयोध्या नरेश दशरथ के मुख्य कुटनितिक मंत्री आर्य सुमन्त्र नें लक्ष्मण को ये बताया की श्री राम भगवान विष्णू के अवतार हैं और महाराज दशरथ और मुझे ये पहले से ही ज्ञात था तो लक्ष्मण बहुत व्याकुल हो गये और प्रभु श्री राम जी के पास गये और उनको पूछनें लगे की भईया मुझे आर्य सुमन्त्र जी नें कुछ बातें बताई जिससे मैं अत्यंत व्याकुल हो गया । लक्ष्मण की इस बात पर श्री राम जी नें उनसे पूछा की क्या बात है लक्ष्मण बताओ तो लक्ष्मण कहते हैं की आर्य सुमन्त्र कहते हैं की आप भगवान विष्णू के अवतार हैं और भाभी मां सीता , देवी लक्ष्मी जी की अवतार हैं और ये पिता जी और आर्य सुमन्त्र जी को महर्षि दुर्वासा जी नें पहले ही बता दिया था किंतू पिता जी फिर भी इतनें व्याकुल क्यों रहे ? इस बात पर श्री राम कहते हैं की इश्वर तो कण-२ में व्याप्त हैं वो तुम में भी है और आर्य सुमन्त्र में भी ,,,तो तुम और सुमन्त्र भी तो भगवान हुऐ और त्रिकालदर्शी होनें को मैं मुख्य नहीं मानता क्योंकी योग-ध्यान के माध्यम से कोई भी त्रिकालदर्शी हो सकता है किंतू सुख और दु:ख में समभाव में रहना यही भगवान का स्वभाव है किंतू मन