आत्मसात करने योग्य सुंदर कविता

आत्मसात करने योग्य सुंदर कविता।
              *-:" माँ ":-*


*लेती नहीं दवाई "माँ",*
जोड़े पाई-पाई "माँ"।


*दुःख थे पर्वत, राई "माँ",*
हारी नहीं लड़ाई "माँ"।


*इस दुनियां में सब मैले हैं,*
किस दुनियां से आई "माँ"।


*दुनिया के सब रिश्ते ठंडे,*
गरमागर्म रजाई "माँ" ।


*जब भी कोई रिश्ता उधड़े,*
करती है तुरपाई "माँ" ।


*बाबू जी तनख़ा लाये बस,*
लेकिन बरक़त लाई "माँ"।


*बाबूजी थे सख्त मगर ,*
माखन और मलाई "माँ"।


*बाबूजी के पाँव दबा कर*
सब तीरथ हो आई "माँ"।


*नाम सभी हैं गुड़ से मीठे*,
मां जी, मैया, माई, "माँ" ।


*सभी साड़ियाँ छीज गई थीं,*
मगर नहीं कह पाई  "माँ" ।


*घर में चूल्हे मत बाँटो रे,*
देती रही दुहाई "माँ"।


*बाबूजी बीमार पड़े जब,*
साथ-साथ मुरझाई "माँ" ।


*रोती है लेकिन छुप-छुप कर*,
बड़े सब्र की जाई "माँ"।


*लड़ते-लड़ते, सहते-सहते,*
रह गई एक तिहाई "माँ" ।


*बेटी रहे ससुराल में खुश,*
सब ज़ेवर दे आई "माँ"।


*"माँ" से घर, घर लगता है,*
घर में घुली, समाई "माँ" ।


*बेटे की कुर्सी है ऊँची*,
पर उसकी ऊँचाई "माँ" ।


*दर्द बड़ा हो या छोटा हो,*
याद हमेशा आई "माँ"।*


*घर के शगुन सभी "माँ" से,*
है घर की शहनाई "माँ"।


*सभी पराये हो जाते हैं,*
होती नहीं पराई मां II


*✍ कौशलेंद्र वर्मा।*


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