संगत का प्रभाव

*-:संगत का प्रभाव:-*
एक मादा शुक ने दो जुड़वा बच्चों को जन्म दिया। मालिक उन दोनों को बेचने बाजार पहुंचा, जिनमें से एक को डाकू सरदार ने व दूसरे को एक महंत ने खरीदा।


एक बार उस राज्य का राजा शिकार के दौरान रास्ता भटकते हुए एक बस्ती के पास पहुंचा तो पिंजरे में बैठा एक तोता आवाज देने लगा- ‘कोई अमीर आ रहा है, लूटो-लूटो, पकड़ो-पकड़ो, मारो-मारो।’ 


यह सुनते ही राजा सावधान हो गया। उसने तुरंत अपना घोड़ा दूसरी दिशा में मोड़ लिया।


थोड़ी दूरी पर राजा दूसरी बस्ती में पहुंचा। घोड़े की टाप सुनकर दूसरा तोता पिंजरे में बोल उठा- ‘पधारिए अतिथि देवता, ऋषि आश्रम में आपका स्वागत है।’


राजा ने रात भर वहां विश्राम किया। सुबह राजा ने मंत्री से पूछा- ‘‘एक तोते ने लूटने, मारने की आवाज में पुकारा, दूसरे ने अतिथि देवो भव: के स्वर में स्वागत किया। दोनों में इतना अंतर कैसे आया होगा?’’


मंत्री ने तोते वाले से जानकारी ली और बताया- ‘‘राजन, ये दोनों तोते सगे भाई हैं। किंतु एक को डाकू सरदार ने खरीद लिया। उसे डाकुओं जैसे संस्कार मिले। दूसरे को एक महंत जी ने खरीद लिया। उसे ऋषि आश्रम में अतिथि सत्कार के संस्कार मिले, इसलिए आचरण में इतना अंतर आ गया।’’


अच्छी संगति मिलने पर पशु भी शिष्ट आचरण सीख जाता है। गलत संगति मिलने पर मनुष्य भी पशु जैसा आचरण करने लगता है।


मनुष्य बचपन में जो कुछ सीखता है, वह अपने घर-परिवार और आस-पड़ोस के माहौल से ही सीखता है। उसकी संगत जीवन निर्माण में नींव का पत्थर बन जाती है।
*✍ कौशलेन्द्र वर्मा।*


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