संस्कृति ही सभ्यता की जननी है

*-:संस्कृति ही सभ्यता की जननी है:-*


इस चित्र की कलात्मकता देखिये । दो माताऐे है, एक माया मिटटी की- एक काया की, एक निर्जीव- एक सजीव, दोनों के बीच रूह कांपा देने वाला अंतर हैं।
ये वो देश है जहाँ र्निजीव मूर्तियों की पूजा में अरबों रुपये फूँक दिए जाते हैं. और जीवित माताओं को दूरदशा करके छोड़ देते है
अरे बेवकूफों आखिरकार कब समझोगे इन पत्थर की मूर्तियों ने, इन भगवानों ने कभी किसी युग में हमारा कोई भला नहीं किया
सिवाय इनको खड़ा करने वाले अधर्मियों, धूर्तों का भला करने के 


लात मारो इन सब झूठ पर खड़ी सोचों को, छलावों को...


नहीं कहता मैं संस्कृति को विसार दो ।
 संस्कृति के साथ सभ्यता पर भी ध्यान दो।
*✍ कौशलेंद्र वर्मा।*


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