संत, भगवत विग्रह और गाय का कोई मोल नहीं होता

संत,भगवद विग्रह और गाय का कोई मोल नहीं होता।
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एक बार श्री आपस्तम्ब ऋषि  भगवान नर्मदा जी के अगाद जल में समाधि लगा कर तप में निरत थे।संयोग से वे मछुऒ के जाल में फंस गए। मछुए जब उनको बाहर निकाले तो वे इन परम तपस्वी को देख कर डर गए। ऋषि ने कहा डरने की कोई बात नहीं,तुम लोगों की तो यह जीविका है। मछली की जगह तो मै ही फंस गया तो तुम लोग मुझे बेच कर उचित मुल्य प्राप्त करो। मल्लाहों की समझ में नहीं आ रहा था।कि वे क्या करे? उसी समय राजा नाभाग जी यह समाचार पाकर वहां आये और मुनि की पूजा एवम प्रणाम कर हाथ जोड़ कर बोले-महाराज!कहिये,मै आप की कौन सी सेवा करूँ? ऋषि ने कहा-आप हमारा उचित मुल्य अर्पण करो।। राजा ने कहा-मै उन्हें एक करोड़ मुद्रा या अपना सारा राज्य देने को प्रस्तुत हूं। ऋषि ने कहा यह भी हमारा उचित मुल्य नहीं है। अब तो राजा चिंता में पड़ गए। भगवन इच्छा से उसी समय महर्षि लोमश जी वहां आये। जब उनको सारी बात बताई तो वो बोले-राजन!आप इनके बदले इन मछुआरों को एक गाय दे दो। साधू ब्राह्मण और गाय तथा भगवद विग्रह का कोई मोल नहीं होता। ये तो अनमोल हैं। यह निर्णय सुन कर श्री आपस्तम्ब ऋषि भी प्रसन्न हो गए।
कहने का तात्पर्य यह है कि गाय की अनंत महिमा है। गोदान जीव के लिए लोक और परलोक दोनों में परम कल्याण कारी हैं।
गौ चरणों का दास-कौशलेन्द्र वर्मा संस्थापक गौलोक परिवार ट्रस्ट संपर्क सुत्र-9868008748


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