शहीद महावीर सिंह राठौर

*-:शहीद महावीर सिंह राठौर:-*


शहीद महावीर सिंह राठौर का जन्म 16 सितम्बर 1904 को उत्तर प्रदेश में जिला एटा के राजा का रामपुर के शाहपुर टहला ग्राम में हुआ था । पिता का नाम कुँवर देवी सिंह राठौर व माता का नाम श्रीमती शारदा देवी था। महावीर सिंह जी ने आठवीं कक्षा तक की शिक्षा कासगंज, मैट्रिक एटा में पूर्ण की उसके बाद की शिक्षा पूरी करने के लिये आप कानपुर गये, जो उस वक्त क्रांतिकारी नेताओं का केंद्र बन चुका था । वहीं से आप भी क्रांतिकारी नेता भगतसिंह, चंद्रशेखर आज़ाद, सुखदेव, शिव वर्मा आदि के साथ उन्हीं के दल में शामिल हो गये ।


8-9 सितम्बर 1928 को इन लोगों ने दिल्ली में एक मीटिंग की और एक केन्द्रीय दल बनाया।दल की कार्यकारिणी समिति में आठ सदस्य चुने गए। ये थे सुखदेव ,भगत सिंह,शिव वर्मा, महावीर सिंह,विजय कुमार सिन्हा,फणीद्रनाथ घोष,कुन्दन लाल और चन्द्रशेखर आजाद ।
अक्टूबर 1928 के अंतिम सप्ताह में साइमन कमीशन लाहौर पहुँचा।वहाँ इसके विरोध में लाला लाजपत राय के नेतृत्व में एक विशाल जुलूस खड़ा था। पुलिस ने जुलूस पर लाठियाँ बरसाईं।लाला जी घायल हो गये और कुछ दिन बाद उनकी मृत्यु हो गई।


लाला जी की मौत का बदला लेने के लिए एस.पी. मि.स्काट की हत्या की योजना बनी। मि.स्काट को पहचान कर उनकी तरफ इशारा करने का काम जय गोपाल को सौंपा गया था। 17 दिसम्बर 1928 को हत्या का दिन निश्चित हुआ। जय गोपाल ने मि.सांडर्स को स्काट समझते हुए उधर इशारा कर दिया।पहले राजगुरु ने गोली चलाई फिर भगत सिंह ओर राजगुरु दोनो ने मिलकर फायर किए और वहाँ से भाग निकले । ट्रैफिक इंस्पेक्टर फर्न व हैड कान्स्टेबिल चनन सिंह ने उनका पीछा किया। भगत सिंह के पुन:फायर करने पर फर्न तो पीछे लौट गया; किन्तु चनन सिंह पीछा करता रहा । उसी सड़क पर पहरा दे रहे महावीर सिंह ने चनन सिंह को गोली मार दी । काफी दिन तक पुलिस से छिपते-छिपाते हुये महावीर सिंह कासगंज आ गए और कुछ दिन वहाँ की नगर पालिका में क्लर्क पद पर काम भी किया ।


वे 19 जून 1929 को प्रात:7 बजे नहा धोकर संध्या कर रहे थे कि पुलिस ने चारों तरफ से मकान को घेर लिया । उनकी व मकान की तलाशी के बाद मुँह पर कपड़ा डाल कर उन्हें एटा होते हुए सीधे लाहौर ले जाया गया और सांडर्स हत्या कांड में सहयोग देने के लिए शिव वर्मा, डा.गया प्रसाद ,किशोरी लाल आदि के साथ उन्हें भी आजीवन कारावास की सजा सुना दी गई।


एक दिन वह मुक्केबाजी का अभ्यास महावीर सिंह पर करने लगा। उस समय महावीर सिंह के हाथ में हथकड़ी तो नहीं थी किन्तु चार वार्डरों ने मिल कर उनके दोनो हाथ पकड़ रखे थे । झटके से अपना दाहिना हाथ छुड़ाकर उन्होंने एक जोरदार मुक्का सुपरिन्टेंडेंट के मुँह पर दे मारा। वह लड़खड़ाकर वहीं गिरकर बेहोश हो गया। उस दिन से उसने मुक्केबाजी तो छोड़ दी ; किन्तु मुक्के का बदला तीस बेतों की कठोरतम सजा सुना कर लिया।


19 जनवरी 1933 को सरकार ने परेशान हो कर उन्हें अंडमान भेज दिया । वहाँ के अत्याचारों से पीड़ित हो कर 12 मई 1933 को महावीर सिंह व अन्य 32 लोगों ने भूख हड़ताल कर दी । डॉक्टरों द्वारा जबरन भोजन दिये जाने के प्रयास में नाक के रास्ते पेट में उतारी जाने वाली रबड़ की नली उनके फेफड़ों में चली गई ।डाक्टरों ने नली में जो दूध डाला वह भी फेफड़ों में ही चला गया ।इस से वह बेहोश हो गए और उसी दिन 17 मई 1933 को उनका प्राणान्त हो गया ।


उनके माता पिता को उनकी मृत्यु की सूचना तक नहीं दी गई और उसी रात उनका शव भारी पत्थर से बाँध कर समुद्र की अथाह जल राशि में फेंक दिया गया था |


*✍ कौशलेंद्र वर्मा।*


Comments

Popular posts from this blog

श्रीमद् भागवत कथा कलश यात्रा में महिलाओं ने लिया भारीख्या में भाग

खोड़ा मंडल मे अनेकों शक्ति केंद्र के बूथों पर सुनी गई मन की बात

भारतीय मैथिल ब्राह्मण कल्याण महासभा संगठन मैथिल ब्राह्मणों को कर रहा है गुमराह