एक ले दूजी डाल

*-:एक ले दूजी डाल:-*


*चींटी चावल ले चली, बीच में मिल गई दाल।*
*कहत कबीर दो ना मिले, एक ले दूजी डाल।।*


*एक चींटी अपने मुंह में चावल लेकर जा रही थी, चलते चलते उसको रास्ते में दाल मिल गई, उसे भी लेने की उसकी इच्छा हुई लेकिन चावल मुंह में रखने पर दाल कैसे मिलेगी। दाल लेने को जाती है तो चावल नहीं मिलता।* चींटी का दोनों को लेने का प्रयास था।
कबीर कहते हैं-- "दो ना मिले इक ले " चावल हो या दाल।


कबीर दास जी के इस दोहे का भाव यह है कि *हमारी स्थिति भी उसी चींटी -जैसी है। हम भी संसार के विषय भोगों में फंस कर अतृप्त  ही रहते हैं, एक चीज मिलती है तो चाहते हैं कि दूसरी भी मिल जाए, दूसरी मिलती है तो चाहते हैं कि तीसरी मिल जाए।* यह परंपरा बंद नहीं होती और हमारे जाने का समय आ जाता है।


यह हमारा मोह है, लोभ है। हमको लोहा मिलता है, किंतु हम सोने के पीछे लगते हैं। पारस की खोज करते हैं ताकि लोहे को सोना बना सकें। *काम, क्रोध, लोभ यह तीनों प्रकार के नरक के द्वार हैं। यह आत्मा का नाश करने वाले हैं अर्थात अधोगति में ले जाने वाले हैं।* इसलिए इन तीनों को त्याग देना चाहिए।


"दो ना मिले एक ले दूजी डाल "इस कथन में मुख्य रूप से संतोष की शिक्षा है जो लोभ, मोह आदि से बचने का संदेश है। 


वस्तुतः प्रारब्ध से जो कुछ प्राप्त है, उसी में संतोष करना चाहिए। क्योंकि जो प्राप्त होने वाला है उसके लिए श्रम करना व्यर्थ है, और जो प्राप्त होने वाला नहीं है उसके लिए भी श्रम करना व्यर्थ है। अपने समय की हानि करनी है। *यह समझना चाहिए कि हमारे कल्याण के लिए प्रभु ने जैसी स्थिति में हमको रखा है। वही हमारे लिए सर्वोत्तम है, उसी में हमारी भलाई है, मन के अनुसार न किसी को कभी वस्तु मिली है, और न मिलने वाली है।* क्योंकि तृष्णा  का, कामना का,  कोई अंत नहीं है।
हम भगवान को पसंद करते हैं, तो क्या मांगते हैं। इस पर विचार करना चाहिए, कबीर जी कहते हैं --- "एक ले दूजी डाल"। 


*हमारा मन भी चींटी सरीखा है। बुद्धि हमारा सारथी है, किंतु उस पर हमारा ध्यान ही नहीं जाता।* हम मन के हिसाब से चलते हैं और दुखी होते हैं। अतः "एक ले दूजी डाल" अर्थात जो मिल जाए उसे प्रभु प्रसाद मानकर ग्रहण करें और अधिक की लालसा कदापि न करें।
*✍ कौशलेंद्र वर्मा।,*


Comments

Popular posts from this blog

श्रीमद् भागवत कथा कलश यात्रा में महिलाओं ने लिया भारीख्या में भाग

खोड़ा मंडल मे अनेकों शक्ति केंद्र के बूथों पर सुनी गई मन की बात

भारतीय मैथिल ब्राह्मण कल्याण महासभा संगठन मैथिल ब्राह्मणों को कर रहा है गुमराह