मैं अब अनपढ़ नहीं रहूंगी

"मैं  अब अनपढ  नहीं  रहूंगी "


  *-:मां मैं अनपढ़ नहीं रहुंगी:-*


मां    मैं  तुमसे  ह्रदय  से कहूंगी 
अब     मैं  अनपढ   नहीं  रहूंगी 


अज्ञानता  है  सभी दुखों  की जननी
इसके  रहते  अपनों  से  भी न बननी
ईर्ष्या -द्वेष   से  हुए ह्रदय  भी छलनी
है अनमोल ये जीवन सुन मेरी जननी


हर   कर्तव्य    को  मैं   पूरा   करूंगी 
मैं      अब     अनपढ     नहीं   रहूंगी 


क्या    कहूँ   आज   मैं   जाकर उनको
जीते    देश   क्यों  ? दुखाकर  मन को 
धुल  गए  पाप   क्या ? धोकर  तन को
जला दिल कहे दीवाली  भी निर्धन  को


मैं     कब   तक   इस   तरह    जलूंगी 
मैं     अनपढ     अब     नहीं      रहूंगी 


मां    मुझे   अब   तू   छोड   दे अकेली
कितनी सदियों  से तूने मुसीबतें  झेली
अपनी   महनत की   तुझे न मिली धेली
आज   सपने   में    मैं   जहाज  से खेली


मैं   सच में   तुझे   साथ  लेकर   उडूगी
मैं     अनपढ     अब      नहीं      रहूंगी 


नहीं    है    ये    किस्मत     की    रेखा
शिक्षा    नहीं    वहां   गरीबी  को देखा
चेतनता  से  हर     दुखों     को    फेंका 
कर्म    प्रधान    है    यह    मैने      देखा 


मैं      शिक्षा     से       सबल      बनूंगी 
मैं      अनपढ      अब    नहीं      रहूंगी 


 देख    ये    जीवन   जैसे     छाव-धूप
है    वही   इंसान    जिसे   हो  महसूस 
मिले  ज्ञान   से   जीवन  को  नया रूप
मिट   गए अज्ञान  में जाने कितने सपूत


मैं   अज्ञानता   को    मिटाकर    रहूँगी
मैं       अनपढ     अब     नहीं    रहूंगी 


आज   मैं  बेशक हूँ   देख  सबसे छोटी
काश  मां  जैसी ममता  सभी में   होती
दहेज के कारण बह रहे आंखो  से मोती
अनपढ  रहकर मैं   भी  जीवन भर रोती


पढ  "वेद"  मैं  हर   जुल्म   से    लडूगी 
अब     मैं       अनपढ     नहीं      रहूंगी।
✍ कौशलेंद्र वर्मा।


Comments

Popular posts from this blog

सनातन जागृति परिवार के संस्थापक हरि ओम के मार्गदर्शन में राष्ट्रीय कार्यकारिणी सदस्यों की विशेष बैठक आयोजित की गई

श्रीमद् भागवत कथा कलश यात्रा में महिलाओं ने लिया भारीख्या में भाग

खोड़ा मंडल मे अनेकों शक्ति केंद्र के बूथों पर सुनी गई मन की बात