पेड़ की सीख
*-:पेड़_की_सीख:-*
एक बार छत्रपति शिवाजी_महाराज जंगल में शिकार करने जा रहे थे....अभी वे कुछ दूर ही आगे बढे थे कि एक पत्थर आकर उनके सिर पर लगा....शिवाजी क्रोधित हो उठे , और इधर-उधर देखने लगे , पर उन्हें कोई भी दिखाई नहीं दे रहा था ,तभी पेड़ों के पीछे से एक बुढ़िया सामने आई और बोली ये पत्थर मैंने फेंका था ,कहि लगी तो नही !!
शिवाजी ने पुछा
आपने ऐसा क्यों किया ?
बुढ़िया- क्षमा कीजियेगा महाराज , मैं तो आम के इस पेड़ से कुछ आम तोड़ना चाहती थी , पर बूढी होने के कारण मैं इस पर चढ़ नहीं सकती इसलिए पत्थर मारकर फल तोड़ रही थी , पर गलती से वो पत्थर आपको जा लगा।
यह सुन शिवाजी महाराज कुछ समय के लिए मौन हो गए और सोचने लगे..!!
यदि यह साधारण सा एक पेड़ इतना सहनशील और दयालु हो सकता है जो की मारने वाले को भी मीठे फल देता हो तो भला मैं एक राजा हो कर सहनशील और दयालु क्यों नहीं हो सकता ?
और ऐसा सोचते हुए उन्होंने बुढ़िया को कुछ स्वर्ण मुद्राएं भेंट कर दीं।
मित्रों सहनशीलता और दया कमजोरों नहीं बल्कि वीरों के गुण हैं...आज जबकि छोटी-छोटी बातों पर लोगों का क्रोधित हो जाना और मार-पीट पर उतर आना आम होता जा रहा है ऐसे में शिवाजी के जीवन का यह प्रसंग हमें सिहष्णु और दयालु बनने की सीख देता है...।
*✍ कौशलेंद्र वर्मा।*
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