एक बेरोजगार का दर्द
डिग्रियां टंगी दीवार सहारे, मेरिट का ऐतबार नहीं है, सजी है अर्थी नौकरियों की, देश में अब रोज़गार नहीं है। शमशान हुए बाज़ार यहां सब, चौपट कारोबार यहां सब, डॉलर पहुंचा आसमान पर, रुपया हुआ लाचार यहां सब, ग्राहक बिन व्यापार नहीं है, देश में अब रोज़गार नहीं है। चाय से चीनी रूठ गई है, दाल से रोटी छूट गई है, साहब खाएं मशरूम की सब्जी, कमर किसान की टूट गई है, है खड़ी फसल ख़रीदार नहीं है, देश में अब रोज़गार नहीं है। दाम सिलेंडर के दूने हो गए, कल के हीरो नमूने हो गए, मेकअप-वेकअप हो गया महंगा, चाँद से मुखड़े सूने हो गए, नारी है पर श्रृंगार नही है, देश मे अब रोज़गार नही है। साधु-संत व्यापारी हो गए, व्यापारी घंटा-धारी हो गए, कैद में आंदोलनकारी हो गए, सरकार से कोई सरोकार नही है, युवा मगर लाचार नही है देश