Posts

Showing posts with the label कहानियां

गरीबी सबसे बड़ा अभिशाप है।

Image
गरीबी सबसे बड़ा अभिशाप है।   जैसे ही ट्रेन रवाना होने को हुई, एक औरत और उसका पति एक ट्रंक लिए डिब्बे में घुस पडे़।दरवाजे के पास ही औरत तो बैठ गई पर आदमी चिंतातुर खड़ा था।जानता था कि उसके पास जनरल टिकट है और ये रिज़र्वेशन डिब्बा है।टीसी को टिकट दिखाते उसने हाथ जोड़ दिए। " ये जनरल टिकट है।अगले स्टेशन पर जनरल डिब्बे में चले जाना।वरना आठ सौ की रसीद बनेगी।" कह टीसी आगे चला गया। पति-पत्नी दोनों बेटी को पहला बेटा होने पर उसे देखने जा रहे थे।सेठ ने बड़ी मुश्किल से दो दिन की छुट्टी और सात सौ रुपये एडवांस दिए थे। बीबी व लोहे की पेटी के साथ जनरल बोगी में बहुत कोशिश की पर घुस नहीं पाए थे। लाचार हो स्लिपर क्लास में आ गए थे। " साब, बीबी और सामान के साथ जनरल डिब्बे में चढ़ नहीं सकते।हम यहीं कोने में खड़े रहेंगे।बड़ी मेहरबानी होगी।" टीसी की ओर सौ का नोट बढ़ाते हुए कहा। " सौ में कुछ नहीं होता।आठ सौ निकालो वरना उतर जाओ।" " आठ सौ तो गुड्डो की डिलिवरी में भी नहीं लगे साब।नाती को देखने जा रहे हैं।गरीब लोग हैं, जाने दो न साब।" अबकि बार पत्नी ने कहा। " तो फिर ऐसा क

जैसी संगत बैठिए तैसोई फल दीन

Image
मनुष्य जिस संगति में बैठता है, वैसा ही फल मिलता है। कहने का अर्थ है कि संगति का प्रभाव अवश्य होता है। एक प्रसिद्ध कहावत है -  काजर की कोठरी में कैसो हू सायानो जाए, एक रेख काज़र की लागे ही लागे।  यदि सज्जन दुर्जनो से घिरा रहेगा, दुर्जनों के अवगुण उस पर जरूर प्रभाव डालेंगे। जिन मित्रों के साथ हम रहते है, उनके प्रभाव से बचना अत्यंत कठिन है। यदि मित्र अच्छे होंगे, तो हम उन्नति की ओर अग्रसर होंगे। यदि वे मौजी, विलासी और घुमक्कड़ हैं, तो हमे भी वैसा ही बना देंगे। यदि वे पढ़ाकू, गंभीर और जागरूक होंगे, तो वे हमे भी जागरूक बना देंगे। अतः हमें सोच समझ कर मित्रता करनी चाहिए कि हम कैसे बनाना चाहते हैं? यदि आप सफल बनाना चाहते हैं तो सफल लोगों के साथ मित्रता करें। यदि समाज सेवा करना चाहते हैं, तो सज्जनों के साथ मित्रता करें। मित्रता अपना प्रभाव अवश्य छोड़ती है।

छुआछूत

Image
पुराने जमाने में जब डाक्टर नहीं होते थे तब....... बच्चे की नाभि कौन काटता था मतलब पिता से भी पहले कौन सी जाति बच्चे को स्पर्श करती थी?  आपका मुंडन करते वक़्त कौन आपको स्पर्श करता था?  शादी के मंडप में नाई और धोबन भी होती थी  वाल्मीकियों द्वारा बनाए गए सूप से ही छठ व्रत होता है। आपके घर में कुआें से पानी कौन लाता था?  भोज के लिए पत्तल कौन सी जाति बनाती थी? डोली अपने कंधे पर रखकर कौन मिलों दूर ले जाता था जिसके जिंदा रहते किसी की मजाल ना थी कि आपकी बिटिया को छू भी ले।  किसके हाथो से बनाए मिट्टी की सुराही का पानी पीकर आपकी प्यास बुझती थी? कौन आपकी झोपड़ियां बनाता था?  कौन आपकी फसल लाता था?  कौन आपकी चिता जलाने में सहायक होता था?    जन्म से लेकर मृत्यु तक सब सबको कभी ना कभी स्पर्श करते थे।  और कहते है कि छुआछुत था.....  यह छुआछूत की बीमारी मुगलों और अंग्रेजों ने हिन्दू धर्म को तोड़ने के लिए एक साजिश के तहत डाली थी। जातियां थी पर उनके मध्य प्रेम की एक धारा भी बहती थी, जिसका कभी कोई जिक्र नहीं करता। अगर जातिवाद होता तो राम कभी शबरी के जूठे बेर नहीं खाते...... रत्नाकर महर्षि वाल्मीकि के नाम से

राजा भोज का स्वप्न और सत्य का दिग्दर्शन

Image
राजा भोज उनके समय के बड़े ही साहसी, प्रतापी और विद्वान राजा थे । कहा जाता है कि राजा भोज ने अपने समय में सभी ग्रामों और नगरो में मंदिरों का निर्माण करवाया था । राजा भोज प्रजा की सुख सुविधाओं का बड़ा ही खयाल रखते थे । इतिहास से यह भी विदित होता है कि राजा भोज धर्म, कला, भवन निर्माण, खगोल विद्या, कोश रचना, काव्य, ओषध शास्त्र आदि के विद्वान थे । उनकी इसी विद्वता के रहते एक कहावत प्रचलित हुई – “कहाँ राजा भोज, कहाँ गंगू तैली ”   राजा भोज ने अपने राज्य में बड़े बड़े बाग – बगीचे, मंदिर, तालाब आदि बहुत से सार्वजानिक स्थानों का निर्माण करवाया था । इस बात का राजा को बड़ा ही अभिमान था ।   एक दिन राजा भोज गहरी नींद में सो रहे थे तभी उन्हें एक स्वप्न आया । स्वप्न में उन्होंने देखा कि एक तेजस्वी व्यक्ति उनके सामने आ खड़ा हुआ है । राजा भोज ने उससे पूछा – “ तुम कौन हो ?”   वह तेजस्वी व्यक्ति बोला – “ राजन ! मैं सत्य हूँ, मैं तुझे तेरे कर्मों की सच्चाई बताने के लिए प्रकट हुआ हूँ । मेरे पीछे – पीछे चला आ !”   राजा तो जानता था कि उसने बहुत सारे पूण्य और परमार्थ के कार्य करवाए है अतः वह निश्चिन्त होकर प्रसन्नता

कर भला तो हो भला

    कर भला तो हो भला ” यह कहावत तो आपने बहुत सुनी होगी, लेकिन यह कहावत बनी कैसे ? आज हम आपको इसकी कुछ कहानी सुनायेंगे । प्राचीन समय की बात है । सुन्दर नगर में सुकृति नामक एक राजा राज्य करता था । राजा सुकृति बड़ा ही दयालु, सेवाभावी और धर्मपरायण था । किन्तु सुन्दर नगर की सुन्दरता पर मोहित होकर आये दिन पड़ोसी राज्य आक्रमण किया करते थे । राजा सुकृति के राज्य में भीमसेन नामक एक बड़ा ही बहादुर और निडर सेनापति था । वह कभी भी आक्रमणकारियों को राज्य की सीमा में प्रवेश नहीं करने देता था । सेनापति राज्य के प्रति वफादार तो था, लेकिन एक बार एक युद्ध में जीत उन्हें बहुत महँगी पड़ी । उसमे सेनापति भीमसेन बुरी तरह से घायल हो गया और साथ ही बहुत सारे सैनिक मारे गये । इसी बीच भीमसेन का एक मित्र उससे मिलने आया । यह मित्र राजा से बहुत ईर्ष्या करता था । उसने भीमसेन को राजा के खिलाफ भड़काना शुरू कर दिया । वह कहने लगा – “ तुम लोग दिनरात यहाँ मौत से जूझ रहे हो और राजा वहाँ महलों में अय्याशियाँ कर रहा है । मेरी मानो तो राजा को तख़्त से हटाओ और खुद राजा बन जाओ ।” अपने मित्र के मुंह से राजा की निंदा सुनकर सेनापति भीमसेन

विधि का विधान

Image
एक दिन गरुड़ उड़ते हुए शभीक आरण्यक पर से होकर जा रहे थे। उड़ते हुए उनकी दृष्टि शिला पर बैठे हुए एक कपोत पर पड़ी। वह डर के मारे थर-थर कांप रहा था। देखकर गरुड़ नीचे उतरे। उसकी दयनीय दशा देखकर उनका हृदय करुणा से भर गया। उन्होंने कपोत से पूछा- 'तुम इस तरह क्यों कांप रहे हो? तुम्हें कोई कष्ट है या फिर किसी का भय है? कपोट  ने नतमस्तक होकर कहा- 'देव, कुछ समय पहले इधर से होकर यमराज गये हैं। जाते समय उन्होंने मेरी ओर देखा और देखकर हंसने लगे। मैंने उनसे अकारण ही हंसने का कारण पूछा तो वे बोले - 'बड़े आनन्द से इधर उधर फुदक-फुदक कर इठला रहा है क्योंकि तुझे इस बात का पता नहीं है कि कल प्रात: काल एक काला नाग तुझे उदरस्थ कर जायेगा। तेरे जीवन का एक दिन भी शेष नहीं है। कहकर वे चले गये। उसी क्षण से मेरे हृदय मेें मृत्युभय समा गया है। यही कारण है कि मैं सोच सोच कर कांप रहा हूं।गरुड़ को उस पर दया आ गई। वे यमराज की चुनौती को स्वीकार करते हुए कपोत को अपने पंजों में दबाकर गंधमादन पर्वत की ओर लेकर चल पड़े। हजारों मील की उड़ान भरने के पश्चात् गरुड़ ने कपोत को एक सरोवर के किनारे बैठाते हुए कहा-'अ

मम दीक्षा - गौरक्षा !!

Image
!! मम दीक्षा - गौरक्षा !! ब्रह्मा कहें गाय मेरी बेटी है उसकी नहीं मेरी पूजा - सेवा कर तुझे ब्रह्म लोक दे दिया जायेगा, फिर भी गाय की भक्ति न छोड़ना।  अगर विष्णु कहें गाय की भक्ति - सेवा छोड़ तुझे विष्णु लोक दे दूंगा मेरी पूजा - सेवा कर ना मानना।  अगर भोले बाबा भी एक दिन आ जायें कहें की गाय की भक्ति छोड़ मेरी भक्ति कर मेरे शिव लिंग स्वरुप पर जल चढ़ा, काशी आजा तुझे मुक्त कर दूंगा तब भी गौ - सेवा न छोड़ना। क्योकि गौ - प्रत्यक्ष 33 करोड़ देवी - देवताओ का चलता - फिरता देवालय है। इसे तृण - हरा घास खिला देते से ही मुक्ति मिल जायेगी मृत्यु अटल सत्य है अंतिम समय पर बैतरणी पर कोई पत्थर में से उठ कर देवी - देवता आये या न आये पर गाय को घास खिलाया होगा तो वह जरूर मुक्ति पद देने वहाँ खड़ी मिलेगी। यही सत्य है यही अटल सत्य है मनो न मनो मेरा क्या ? '' *✍ कौशलेंद्र वर्मा।*

आखिरी काम

Image
 आखिरी काम ... एक बूढ़ा कारपेंटर अपने काम के लिए काफी जाना जाता था , उसके बनाये लकड़ी के घर दूर -दूर तक प्रसिद्द थे . पर अब बूढा हो जाने के कारण उसने सोचा कि बाकी की ज़िन्दगी आराम से गुजारी जाए और वह अगले दिन सुबह-सुबह अपने मालिक के पास पहुंचा और बोला , ” ठेकेदार साहब , मैंने बरसों आपकी सेवा की है पर अब मैं बाकी का समय आराम से पूजा-पाठ में बिताना चाहता हूँ , कृपया मुझे काम छोड़ने की अनुमति दें . “ ठेकेदार कारपेंटर को बहुत मानता था , इसलिए उसे ये सुनकर थोडा दुःख हुआ पर वो कारपेंटर को निराश नहीं करना चाहता था , उसने कहा , ” आप यहाँ के सबसे अनुभवी व्यक्ति हैं , आपकी कमी यहाँ कोई नहीं पूरी कर पायेगा लेकिन मैं आपसे निवेदन करता हूँ कि जाने से पहले एक आखिरी काम करते जाइये .” “जी , क्या काम करना है ?” , कारपेंटर ने पूछा . “मैं चाहता हूँ कि आप जाते -जाते हमारे लिए एक और लकड़ी का घर तैयार कर दीजिये ठेकेदार घर बनाने के लिए ज़रूरी पैसे देते हुए बोला . कारपेंटर इस काम के लिए तैयार हो गया . उसने अगले दिन से ही घर बनाना शुरू कर दिया , पर ये जान कर कि ये उसका आखिरी काम है और इसके बाद उसे और कुछ नहीं क

महाशिवरात्रि की कथा : हिरणी की सत्यनिष्ठा

Image
महाशिवरात्रि की कथा : हिरणी की सत्यनिष्ठा एक बार पार्वती ने भगवान शिवशंकर से पूछा, 'ऐसा कौन सा श्रेष्ठ तथा सरल व्रत-पूजन है, जिससे मृत्यु लोक के प्राणी आपकी कृपा सहज ही प्राप्त कर लेते हैं?' उत्तर में शिवजी ने पार्वती को 'शिवरात्रि' के व्रत का विधान बताकर यह कथा सुनाई- 'एक गाँव में एक शिकारी रहता था। पशुओं की हत्या करके वह अपने कुटुम्ब को पालता था। वह एक साहूकार का ऋणी था, लेकिन उसका ऋण समय पर न चुका सका। क्रोधवश साहूकार ने शिकारी को शिवमठ में बंदी बना लिया। संयोग से उस दिन शिवरात्रि थी। शिकारी ध्यानमग्न होकर शिव संबंधी धार्मिक बातें सुनता रहा। चतुर्दशी को उसने शिवरात्रि की कथा भी सुनी। संध्या होते ही साहूकार ने उसे अपने पास बुलाया और ऋण चुकाने के विषय में बात की। शिकारी अगले दिन सारा ऋण लौटा देने का वचन देकर बंधन से छूट गया। अपनी दिनचर्या की भाँति वह जंगल में शिकार के लिए निकला, लेकिन दिनभर बंदीगृह में रहने के कारण भूख-प्यास से व्याकुल था। शिकार करने के लिए वह एक तालाब के किनारे बेल वृक्ष पर पड़ाव बनाने लगा। बेल-वृक्ष के नीचे शिवलिंग था जो बिल्वपत्रों से ढँका हुआ था

परम् रामभक्त

Image
*-:परम् रामभक्त:-* देवरहा बाबा परम् रामभक्त थे, देवरहा बाबा के मुख में सदा राम नाम का वास था, वो भक्तो को राम मंत्र की दीक्षा दिया करते थे। वो सदा सरयू के किनारे रहा करते थे। उनका कहना था--- "एक लकड़ी ह्रदय को मानो दूसर राम नाम पहिचानो राम नाम नित उर पे मारो ब्रह्म दिखे संशय न जानो।'' देवरहा बाबा जनसेवा तथा गोसेवा को सर्वोपरि-धर्म मानते थे तथा प्रत्येक दर्शनार्थी को लोगों की सेवा, गोमाता की रक्षा करने तथा भगवान की भक्ति में रत रहने की प्रेरणा देते थे। देवरहा बाबा श्री राम और श्री कृष्ण को एक मानते थे और भक्तो को कष्ट से मुक्ति के लिए कृष्ण मंत्र भी देते थे--- "ऊं कृष्णाय वासुदेवाय हरये परमात्मने प्रणत: क्लेश नाशाय, गोविन्दाय नमो-नम:।'' बाबा कहते थे- "जीवन को पवित्र बनाए बिना, ईमानदारी, सात्विकता-सरसता के बिना भगवान की कृपा प्राप्त नहीं होती। अत: सबसे पहले अपने जीवन को शुद्ध-पवित्र बनाने का संकल्प लो। वे प्राय: गंगा या यमुना तट पर बनी घास-फूस की मचान पर रहकर साधना किया करते थे।  दर्शनार्थ आने वाले भक्तजनों को वे सद्मार्ग पर चलते हुए अपना मानव जीवन सफल करने

नगर की प्रसिद्ध वैश्या:

Image
*-:नगर की प्रसिद्ध वैश्या:-* नगर की प्रसिद्ध वैश्या की गली से एक योगी जा रहा था कंधे पर झोली डाले। योगी को देखते ही एक द्वार खुला सामने की महिला ने योगी को देखा। ध्यान की गरिमा से आपूर, अंतर मौन की रश्मियों से भरपूर। योगी को देखकर महिला ने निवेदन किया गृह में पधारने के लिए। उसके आमन्त्रण में वासना का स्वर था।  योगी ने उत्तर दिया," देखती नहीं झोली में दवाएं पड़ी हैं, गरीबों में बांटनी हैं उन्हें रोगों से मुक्त करना है। हमारे और तुम्हारे कार्य में अंतर है तुम रोग बढ़ाती हो, हम रोग मिटाते हैं। तुम शरीर और वासना की भाषा बोलती हो, हम सत्य और बोध की।" योगी की बात पर क्रोधित होकर वैश्या बोली," योगी तुम्हें पता है। मेरे रंग रूप के पीछे सारा शहर दिवाना है। मुझे पाने के लिए वह अपने जीवन की भरपूर धन संपदा लुटाने को तत्पर रहते हैं। मैं स्वयं को तुम्हारे आगे समर्पित कर रही हूं और तुम इंकार कर रहे हो।" योगी ने कहा," मुझे तुम्हारा निमंत्रण स्वीकार है परंतु अभी नहीं। मैं आऊंगा और जरूर आऊंगा।" कहते हुए योगी चला गया। समय बीतता गया, महिला वृद्ध हो गई। अब उसे पाने के लिए कोई

दृश्टा बनें निर्णयकर्ता नहीं

Image
*-:दृश्टा बनें निर्णयकर्ता नहीं:-* दूसरों को सही-गलत साबित करने में जल्दबाजी न करें,  पहली कहानी ... ट्रेन में एक पिता-पुत्र सफर कर रहे थे. 24 वर्षीय पुत्र खिड़की से बाहर देख रहा था, अचानक वो चिल्लाया – पापा देखो पेड़ पीछे की ओर भाग रहे हैं ! पिता कुछ बोला नहीं, बस सुनकर मुस्कुरा दिया. ये देखकर बगल में बैठे एक युवा दम्पति को अजीब लगा और उस लड़के के बचकाने व्यवहार पर दया भी आई. तब तक वो लड़का फिर से बोला – पापा देखो बादल हमारे साथ दौड़ रहे हैं ! युवा दम्पति से रहा नहीं गया और वो उसके पिता से बोल पड़े – आप अपने लड़के को किसी अच्छे डॉक्टर को क्यों नहीं दिखाते ? लड़के का पिता मुस्कुराया और बोला – हमने दिखाया था और हम अभी सीधे हॉस्पिटल से ही आ रहे हैं. मेरा लड़का जन्म से अंधा था और आज वो यह दुनिया पहली बार देख रहा है. दूसरी कहानी ... एक प्रोफेसर अपनी क्लास में कहानी सुना रहे थे, जोकि इस प्रकार है – एक बार समुद्र के बीच में एक बड़े जहाज पर बड़ी दुर्घटना हो गयी. कप्तान ने शिप खाली करने का आदेश दिया. जहाज पर एक युवा दम्पति थे. जब लाइफबोट पर चढ़ने का उनका नम्बर आया तो देखा गया नाव पर केवल एक व्यक्ति के लिए

रानी रुदाबाई

Image
*-:रानी रुदाबाई:-* पाटण की रानी रुदाबाई जिसने सुल्तान बेघारा के सीने को फाड़ कर दिल निकाल लिया था, और कर्णावती शहर के बिच में टांग दिया था, एवम दूसरी ओर धड से सर अलग करके पाटन राज्य के बीचोबीच टांग दिया था।  गुजरात से कर्णावती  के राजा थे, राणा वीर सिंह वाघेला., ईस राज्य ने कई तुर्क हमले झेले थे, पर कामयाबी किसी को नहीं मिली, सुल्तान बेघारा ने सन् १४९७ पाटण राज्य पर हमला किया राणा वीर सिंह वाघेला के पराक्रम के सामने सुल्तान बेघारा की ४०००० से अधिक संख्या की फ़ौज २ घंटे से ज्यादा टिक नहीं पाई, सुल्तान बेघारा जान बचाकर भागा।  असल मे कहते है सुलतान बेघारा की नजर रानी रुदाबाई पे थी, रानी बहुत सुंदर थी, वो रानी को युद्ध मे जीतकर अपने हरम में रखना चाहता था। सुलतान ने कुछ वक्त बाद फिर हमला किया।  राज्य का एक साहूकार इस बार सुलतान बेघारा से जा मिला, और राज्य की सारी गुप्त सूचनाएं सुलतान को दे दी, इस बार युद्ध मे राणा वीर सिंह वाघेला को सुलतान ने छल से हरा दिया जिससे राणा वीर सिंह उस युद्ध मे वीरगति को प्राप्त हुए।  सुलतान बेघारा रानी रुदाबाई को अपनी वासना का शिकार बनाने हेतु राणा जी के महल की

एक ले दूजी डाल

Image
*-:एक ले दूजी डाल:-* *चींटी चावल ले चली, बीच में मिल गई दाल।* *कहत कबीर दो ना मिले, एक ले दूजी डाल।।* *एक चींटी अपने मुंह में चावल लेकर जा रही थी, चलते चलते उसको रास्ते में दाल मिल गई, उसे भी लेने की उसकी इच्छा हुई लेकिन चावल मुंह में रखने पर दाल कैसे मिलेगी। दाल लेने को जाती है तो चावल नहीं मिलता।* चींटी का दोनों को लेने का प्रयास था। कबीर कहते हैं-- "दो ना मिले इक ले " चावल हो या दाल। कबीर दास जी के इस दोहे का भाव यह है कि *हमारी स्थिति भी उसी चींटी -जैसी है। हम भी संसार के विषय भोगों में फंस कर अतृप्त  ही रहते हैं, एक चीज मिलती है तो चाहते हैं कि दूसरी भी मिल जाए, दूसरी मिलती है तो चाहते हैं कि तीसरी मिल जाए।* यह परंपरा बंद नहीं होती और हमारे जाने का समय आ जाता है। यह हमारा मोह है, लोभ है। हमको लोहा मिलता है, किंतु हम सोने के पीछे लगते हैं। पारस की खोज करते हैं ताकि लोहे को सोना बना सकें। *काम, क्रोध, लोभ यह तीनों प्रकार के नरक के द्वार हैं। यह आत्मा का नाश करने वाले हैं अर्थात अधोगति में ले जाने वाले हैं।* इसलिए इन तीनों को त्याग देना चाहिए। "दो ना मिले एक ले दूजी डा

पेड़ की सीख

Image
*-:पेड़_की_सीख:-* एक बार छत्रपति शिवाजी_महाराज जंगल में शिकार करने जा रहे थे....अभी वे कुछ दूर ही आगे बढे थे कि एक पत्थर आकर उनके सिर पर लगा....शिवाजी क्रोधित हो उठे , और इधर-उधर देखने लगे , पर उन्हें कोई भी दिखाई नहीं दे रहा था ,तभी पेड़ों के पीछे से एक बुढ़िया सामने आई और बोली ये पत्थर मैंने फेंका था ,कहि लगी तो नही !! शिवाजी ने पुछा आपने ऐसा क्यों किया ? बुढ़िया- क्षमा कीजियेगा महाराज , मैं तो आम के इस पेड़ से कुछ आम तोड़ना चाहती थी , पर बूढी होने के कारण मैं इस पर चढ़ नहीं सकती इसलिए पत्थर मारकर फल तोड़ रही थी , पर गलती से वो पत्थर आपको जा लगा। यह सुन शिवाजी महाराज कुछ समय के लिए मौन हो गए और सोचने लगे..!! यदि यह साधारण सा एक पेड़ इतना सहनशील और दयालु हो सकता है जो की मारने वाले को भी मीठे फल देता हो तो भला मैं एक राजा हो कर सहनशील और दयालु क्यों नहीं हो सकता ? और ऐसा सोचते हुए उन्होंने बुढ़िया को कुछ स्वर्ण मुद्राएं भेंट कर दीं। मित्रों सहनशीलता और दया कमजोरों नहीं बल्कि वीरों के गुण हैं...आज जबकि छोटी-छोटी बातों पर लोगों का क्रोधित हो जाना और मार-पीट पर उतर आना आम होता जा रहा है ऐसे में शि

सुन लो मेरी दर्द कहानी

Image
*-:सुन लो मेरी दर्द कहानी:-* ए हिंद देश के लोगों, सुन लो मेरी दर्द कहानी। क्यों दया धर्म विसराया, क्यों दुनिया हुई वीरानी। जब सबको दूध पिलाया, मैं गौ माता कहलाई, क्या है अपराध हमारा, जो काटे आज कसाई। बस भीख प्राण की दे दो, मै द्वार तिहारे आई, मैं सबसे निर्बल प्राणी, मत करो आज मनमानी॥ जब जाउँ कसाईखाने, चाबुक से पीटी जाती, उस उबले जल को तन पर, मैं सहन नहीं कर पाती। जब यंत्र मौत का आता, मेरी रुह तक कम्प जाती, मेरा कोई साथ न देता, यहाँ सब की प्रीत पहचानी॥ उस समदृष्टि सृष्टि नें, क्यों हमें मूक बनाया, न हाथ दिए लड़नें को, हिन्दु भी हुआ पराया। कोई मोहन बन जाओ रे, जिसने मोहे कंठ लगाया, मैं फर्ज़ निभाउँ माँ का, दूँ जग को ममता निशानी॥ मैं माँ बन दूध पिलाती, तुम माँ का मांस बिकाते, क्यों जननी के चमड़े से, तुम पैसा आज कमाते। मेरे बछड़े अन्न उपजाते, पर तुम सब दया न लाते, गौ हत्या बंद करो रे, रहनें दो वंश निशानी॥   गौलोक परिवार  संस्थापक  कौशलेन्द्र वर्मा

कर्मफल दाता श्री शनिदेव

Image
कर्मफल दाता श्री शनिदेव  एक बार लक्ष्मीजी ने शनिदेव से प्रश्न किया - हे शनिदेव ! मैं अपने प्रभाव से लोगों को धनवान बनाती हूं और आप हैं कि उनका धन छीन भिखारी बना देते हैं। आखिर आप ऐसा क्यों करते हैं ? लक्ष्मीजी का यह प्रश्न सुन शनिदेव ने उत्तर दिया - 'हे मातेश्वरी ! इसमें मेरा कोई दोष नहीं। जो जीव स्वयं जानबूझकर अत्याचार व भ्रष्टाचार को आश्रय देते हैं और क्रूर व बुरे कर्म कर दूसरों को रुलाते तथा स्वयं हंसते हैं ! उन्हें समय अनुसार दंड देने का कार्यभार परमात्मा ने मुझे सौंपा है। इसलिए मैं लोगों को उनके कर्मों के अनुसार दंड अवश्य देता हूं ! मैं उनसे भीख मंगवाता हूं, उन्हें भयंकर रोगों से ग्रसित बनाकर खाट पर पड़े रहने को मजबूर कर देता हूं ! इस पर लक्ष्मीजी बोलीं - 'मैं आपकी बातों पर विश्वास नहीं करती। देखिए, मैं अभी एक निर्धन व्यक्ति को अपने प्रताप से धनवान व पुत्रवान बना देती हूं ! लक्ष्मीजी ने ज्यों ही ऐसा कहा, वह निर्धन व्यक्ति धनवान एवं पुत्रवान हो गया ! तत्पश्चात लक्ष्मीजी बोलीं - अब आप अपना कार्य करें !' तब शनिदेव ने उस पर अपनी दृष्टि डाली। तत्काल उस धनवान का गौरव व धन सब

चरित्रहीन

Image
*-:'चरित्रहीन':-* स्त्री तब तक 'चरित्रहीन' नहीं हो सकती.... जब तक पुरुष चरित्रहीन न हो "...... गौतम बुद्ध =========================== संन्यास लेने के बाद गौतम बुद्ध ने अनेक क्षेत्रों की यात्रा की... एक बार वह एक गांव में गए। वहां एक स्त्री उनके पास आई और बोली- आप तो कोई "राजकुमार" लगते हैं। ...क्या मैं जान सकती हूं कि इस युवावस्था में गेरुआ वस्त्र पहनने का क्या कारण है ? बुद्ध ने विनम्रतापूर्वक उत्तर दिया कि... "तीन प्रश्नों" के हल ढूंढने के लिए उन्होंने संन्यास लिया..  . बुद्ध ने कहा.. हमारा यह शरीर जो युवा व आकर्षक है, पर जल्दी ही यह "वृद्ध" होगा, फिर "बीमार" और ....अंत में "मृत्यु" के मुंह में चला जाएगा। मुझे 'वृद्धावस्था', 'बीमारी' व 'मृत्यु' के कारण का ज्ञान प्राप्त करना है ..... बुद्ध के विचारो से प्रभावित होकर उस स्त्री ने उन्हें भोजन के लिए आमंत्रित किया.... शीघ्र ही यह बात पूरे गांव में फैल गई। गांव वासी बुद्ध के पास आए व आग्रह किया कि वे इस स्त्री के घर भोजन करने न जाएं....!!! क्यों

सुभाष चंद्र बॉस की धर्मपत्नी

Image
*-:सुभाष चंद्र बोस की धर्मपत्नी:-* आज मै आपको बता रहा हूँ भारत माता की असली बहू के बारे मे पढ़ियेगा जरूर। भारत की असली बहू नेताजी सुभाष चंद्र बोस की धर्मपत्नी जिनका भारत मे कभी स्वागत नही किया.... कांग्रेस ने इनको भी नेताजी की तरह गुमनाम कर दिया! श्रीमती "एमिली शेंकल" ने 1937 मे भारत मां के सबसे लाड़ले बेटे "बोस" जी से विवाह किया! एक ऐसे देश को ससुराल के रूप मे चुना जहां कभी इस "बहू" का स्वागत नही किया गया....न बहू के आगमन पर मंगल गीत गाये गये....न बेटी(अनीता बोस) के जन्म होने पर कोई सोहर ही गाया गया.....यहां तक गुमनामी की इतनी मोटी चादर के नीचे उन्हे ढ़ंक दिया गया कि कभी जनमानस मे चर्चा भी नही हुई....!!! अपने 7 साल के कुल वैवाहिक जीवन मे पति के साथ इन्हे केवल 3 साल रहने का मौका मिला.....फिर इन्हे और नन्ही सी बेटी को छोड़कर बोस जी देश के लिए लड़ने चले गये....!!!! अपनी पत्नी से इस वादे के साथ गये की पहले देश आजाद करा लूँ फिर हम साथ-साथ रहेगे....अफसोस कि ऐसा हुआ नही क्योंकि कथित विमान दुर्घटना मे बोस जी लापता हो गए....!! उस समय "एमिली शेंकल" बेहद य

गंगा जल

Image
*-: गंगा जल:-* *गंगा जल खराब क्यों नहीं होता?* *अमेरिका में एक लीटर गंगाजल* *250 डालर में क्यों मिलता है।* *प्रस्तुति:*प्रयागराज इलाहाबाद* सर्दी के मौसम में कई बार छोटी बेटी को खांसी की शिकायत हुई और कई प्रकार के सिरप से ठीक ही नहीं हुई। इसी दौरान एक दिन घर ज्येष्ठ जी का आना हुआ और वे गोमुख से गंगाजल की एक कैन भरकर लाए। थोड़े पोंगे पंडित टाइप हैं, तो बोले जब डाक्टर से खांसी ठीक नहीं होती तो तब गंगाजल पिलाना चाहिए। मैंने बेटी से कहलवाया, ताउ जी को कहो कि गंगाजल तो मरते हुए व्यक्ति के मुंह में डाला जाता है, हमने तो ऐसा सुना है तो बोले, नहीं कई रोगों का भी इलाज है। बेटी को पता नहीं क्या पढाया वह जिद करने लगी कि गंगा जल ही पिउंगी, सो दिन में उसे तीन बार दो-दो चम्मच गंगाजल पिला दिया और तीन din में उसकी खांसी ठीक हो गई। यह हमारा अनुभव है, हम इसे गंगाजल का चमत्कार नहीं मानते, उसके औषधीय गुणों का प्रमाण मानते हैं। कई इतिहासकार बताते हैं कि सम्राट अकबर स्वयं तो गंगा जल का सेवन करते ही थे, मेहमानों को भी गंगा जल पिलाते थे। इतिहासकार लिखते हैं कि अंग्रेज जब कलकत्ता से वापस इंग्लैंड जाते थे, तो पीन