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किसान आत्महत्या क्यों

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*-:किसान आत्महत्या क्यों:-* मित्रो इससे बड़ी विडम्बना क्या होगी की पूरे देश का पेट भरने वाला किसान खुद भूख से मरता है आत्मह्त्या करता है ! उसके घर की छत टपकती है फिर भी वो बारिश का इंतजार करता है ! हर वर्ष हमारे दे किसान आत्महत्या कर रहे है लेकिन हमारे कृषि प्रधान देश मे ऐसा क्यों हो रहा है ?? और इसका समाधान क्या है ?? इस पोस्ट के माध्यम से हम इस समस्या का मूल कारण और समाधान की बात करेंगे ! देश मे किसानो की आत्महत्या के पीछे का सबसे कारण ये है की प्रतिदिन उनकी खेती का खर्चा बढ़ता जा रहा है और आमदनी कम होती जा रही है जिससे किसान कर्जे मे डूब रहा है और आत्महत्या कर रहा है ! खेती करने के लिए किसान अपने खेत रसायानिक खाद और कीटनाशक डाल रहा है !! जिसको यूरिया,DAP,superphosphate,कहते है और कीटनाशको को एंडोसल्फान ,मेलाथ्यान आदि कहते है ! तो ये विदेशी कंपनियो के कीटनाशक और रासायनिक खाद किसानो के बीच मे सबसे ज्यादा खरीदे जाते है और हर साल 4 लाख 80 हजार करोड़ रूपये ये कंपनियाँ हमारे देश के किसानो से लूटती है ! 4 लाख 80 हजार करोड़ को 100 करोड़ की जनता मे कैश बांटे तो प्रति व्यकित 4800 रूपये आएंगे

हृदय रोग के कारण

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*-:हृदय रोग के कारण:-* मनुष्य का दिल एक मिनट में करीब 72 बार धडक़ता है। 24 घंटों में 1,00,800 बार। एक दिन में मानव हृदय तकरीबन 2000 गैलन खून की पंपिंग करता है। इसलिए हृदय को शरीर का पंपिंग स्टेशन भी कहते हैं। हृदय के लगातार कार्ररत रहने के कारण इसकी अहमियत शरीर के लिए सहज ही समझी जा सकती है।  हृदय रोग पूरी दुनिया के लिए एक अभिशाप साबित हो रहा हैं | ये सर्वविदित हैं की यह रोग घातक हैं | विश्व स्वास्थ्य संघटन ने ये दावा किया हैं की २०२० में विश्व की तुलना में भारत में सबसे ज्यादा हृदय रोगियों की सख्या हो जाएगी | तो हमे मिलजुलकर इसके रोक थाम के लिए सही कदम उठाना चाहिए |  अगर हम बात करे तो इसको कई चरणों में रोका जा सकता हैं | लेकिन रोकथाम से पहले इसके लक्षणों को जानना अतिआवश्यक हैं |  हृदय मांसपेशियों का बना एक पंप है जो मांसपेशियों आरटरी और वीन्स को संकुचित कर रक्त की शरीर के विभिन्न भागों तक पंपिंग करता है। हृदय की इन्हीं धमनियों में चर्बी जमा होने से रक्त प्रवाह रुकता है जो हृदय को रक्त कम पहुँचता है और हृदय की पीड़ा शुरू हो जाती है। इस तरह हृदय रोग का दौरा पड़ता है जो अचानक मृत्यु का म

महर्षि महेश योगी

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*-:महर्षि महेश योगी:-* महर्षि महेश योगी जी ने 'राम' नाम की एक मुद्रा  चलाई थी ।  महर्षि महेश योगीजिसमे कल्पवृक्ष के साथ काम धेनू गाय का भी चित्र था। जिसे नीदरलैंड्स ने साल 2003 में क़ानूनी मान्यता भी दी थी। 'राम' नाम की इस मुद्रा में चमकदार रंगों वाले एक, पाँच और दस के नोट थे। इस मुद्रा को महर्षि की संस्था 'ग्लोबल कंट्री ऑफ़ वर्ल्ड पीस' ने साल 2002 के अक्टूबर में जारी किया गया था। उन्होंने 'ट्रांसेंडेंटल मेडिटेशन' (अनुभवातीत ध्यान) के ज़रिए दुनिया भर में अपने लाखों अनुयायी बनाए थे। साठ के दशक में मशहूर रॉक बैंड बीटल्स के सदस्यों के साथ ही वे कई बड़ी हस्तियों के आध्यात्मिक गुरु हुए और दुनिया भर में प्रसिद्ध हो गए। महर्षि महेश योगी का असली नाम था महेश प्रसाद वर्मा। महर्षि महेश योगी का जन्म 12 जनवरी 1918 को छत्तीसगढ़ के राजिम शहर के पास पांडुका गाँव में हुआ और उन्होंने इलाहाबाद से दर्शनशास्त्र में स्नातकोत्तर की उपाधि ली थी। 40 और 50 के दशक में वे हिमालय में अपने गुरु से ध्यान और योग की शिक्षा लेते रहे। महर्षि महेश योगी ने ध्यान और योग से बेहतर स्वास्थ्य और

महाशिवरात्रि

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*-:महाशिवरात्री:-* *आयरलैंड में एक जगह है *तारा_हिल्स यानि तारा की पहाड़ियाँ जहाँ ये शिवलिंग स्थापित है। वैज्ञानिक इसे 4000 वर्ष प्राचीन बताते हैं, ये शिवलिंग यहाँ के Pre - Christian युग का है जब यहाँ मूर्ति पूजक रहते थे। आज से 2500 वर्ष पहले तक आयरलैंड के सभी राजाओं का राज्याभिषेक यहीं इन्हीं के आशीर्वाद से होता था, फिर 500 AD में ये परम्परा बंद कर दी गई। अभी 7-8 साल पहले वहाँ के कुछ Radical ग़्रुप ने इस शिव लिंग को नुक़सान पहुँचाने की कोशिश भी की थी। इसमें तो कोई शक नहीं कि ये शिव लिंग है क्यूँकि जिस देवी तारा के नाम पर ये पर्वत स्थित है हमारे शास्त्रों में तारा माता पार्वती को भी कहते हैं।  ये तथ्य सिर्फ़ इस बात के लिए नहीं बताया गया कि हम शिव की या अपने धर्म की व्यापकता को समझें और मानें, ये बताने के पीछे मुख्य मक़सद ये है कि अगर हम अब भी नहीं समझे और ऐसी ही सहृदयता दिखाते रहे मूर्ख बनते रहे तो एक दिन हम और हमारा धर्म ऐसे ही अवशेषों में खोजा जाएगा और तब वो हमें अच्छे और समझदार के रूप में नहीं बल्कि आत्मघाती मूर्ख सभ्यता के रूप में याद करेंगे। *✍ कौशलेंद्र वर्मा।*

एक ले दूजी डाल

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*-:एक ले दूजी डाल:-* *चींटी चावल ले चली, बीच में मिल गई दाल।* *कहत कबीर दो ना मिले, एक ले दूजी डाल।।* *एक चींटी अपने मुंह में चावल लेकर जा रही थी, चलते चलते उसको रास्ते में दाल मिल गई, उसे भी लेने की उसकी इच्छा हुई लेकिन चावल मुंह में रखने पर दाल कैसे मिलेगी। दाल लेने को जाती है तो चावल नहीं मिलता।* चींटी का दोनों को लेने का प्रयास था। कबीर कहते हैं-- "दो ना मिले इक ले " चावल हो या दाल। कबीर दास जी के इस दोहे का भाव यह है कि *हमारी स्थिति भी उसी चींटी -जैसी है। हम भी संसार के विषय भोगों में फंस कर अतृप्त  ही रहते हैं, एक चीज मिलती है तो चाहते हैं कि दूसरी भी मिल जाए, दूसरी मिलती है तो चाहते हैं कि तीसरी मिल जाए।* यह परंपरा बंद नहीं होती और हमारे जाने का समय आ जाता है। यह हमारा मोह है, लोभ है। हमको लोहा मिलता है, किंतु हम सोने के पीछे लगते हैं। पारस की खोज करते हैं ताकि लोहे को सोना बना सकें। *काम, क्रोध, लोभ यह तीनों प्रकार के नरक के द्वार हैं। यह आत्मा का नाश करने वाले हैं अर्थात अधोगति में ले जाने वाले हैं।* इसलिए इन तीनों को त्याग देना चाहिए। "दो ना मिले एक ले दूजी डा

जब श्री कृष्ण ने शनिदेव को दिए दर्शन

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*-:जब श्रीकृष्ण ने शनिदेव को दिए दर्शन:-* ************************************ *जब श्रीकृष्ण ने जन्म लिया तो सभी देवी-देवता उनके दर्शन करने नंदगांव पधारे। कृष्णभक्त शनिदेव भी देवताओं संग श्रीकृष्ण के दर्शन करने नंदगांव पहुंचे परंतु मां यशोदा ने उन्हें नंदलाल के दर्शन करने से मना कर दिया क्योंकि मां यशोदा को डर था कि शनि देव की वक्र दृष्टि कहीं कान्हा पर न पड़ जाए।* *परंतु शनिदेव को यह अच्छा नहीं लगा और वो निराश होकर नंदगांव के पास जंगल में आकर तपस्या करने लगे। और सोचने लगे कि पूर्णपरमेश्वर श्रीकृष्ण ने ही तो मुझे न्यायाधीश बनाकर पापियों को दण्डित करने तथा सज्जनों, सत-पुरुषों, भगवत भक्तों का सदैव कल्याण करने का कार्य सौंपा है।*  *भगवान श्रीकृष्ण शनिदेव की इस तपस्या से द्रवित हो गए और शनि देव के सामने कोयल के रूप में प्रकट होकर कहा – हे शनि देव आप निःसंदेह अपने कर्तव्य के प्रति समर्पित हो और आप के ही कारण पापियों – अत्याचारियों – कुकर्मियों का दमन हो रहा है और परोक्ष रूप से कर्म-परायण, सज्जनों, सत-पुरुषों, भगवत भक्तों का कल्याण होता है,* *आप धर्म-परायण प्राणियों के लिए ही तो कुकर्मियों क

देसी पपीता

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*-: देसी पपीता:-* --------------- पपीता को मालवांचल में अरणककड़ी कहते है...अरण्य शब्द अपभ्रंश होते होते अरण हो गया,,अर्थात अरण ककड़ी को वन ककड़ी,जंगल ककड़ी भी कहना गलत नही होगा...।। पपीता एक बहुत ही गुणकारी फल हैं इसकी खेती अब तो पूरे भारतवर्ष में होने लगी हैं ,,पपीता की सबसे अधिक उत्पादन बिहार में होता हैं, वही उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, गुजरात, बंगाल,केरल आदि प्रदेशो में भी इसकी उन्नत खेती होने लगी हैं....। पपीता का फल जितना उपयोगी होता हैं उतना ही उपयोगी इसके पत्ते,बीज ओर जड़ होती हैं जिनके अलग अलग ओषधिय उपयोग हमारे स्वास्थ्य की रक्षा करते है...।। पपीते को पेट के लिए तो वरदान माना गया है...इसमें #पेप्सिन नामक तत्व पाया जाता है, जो भोजन को पचाने में मदद करता है...यह आपके पेट का भी खयाल रखता है और त्वचा की खूबसूरती का भी...। आप मोटे हैं या पाचनतंत्र में गड़बड़ी है? आंतें कमजोर हैं या भूख नहीं लगती? एक मात्र पपीता आपके ऐसे दजर्नों सवाल का जवाब है.... इसमें मौजूद विटामिन ए, बी, डी, प्रोटीन, कैल्शियम, लौह आदि इसे सेहत का खजाना बना देते हैं.... पपीते का रस अरुचि, अनिद्रा, सिरदर्द, कब